Karnataka CM Race : क्या डीके शिवकुमार बनने वाले हैं दूसरे T.S. सिंहदेव? उस डरावनी कहानी ने उड़ाई कांग्रेस की नींद

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News India Live, Digital Desk :  कर्नाटक की राजनीति में इन दिनों एक बार फिर गज़ब का 'सस्पेंस थ्रिलर' चल रहा है। मुद्दा वही पुराना है मुख्यमंत्री की कुर्सी। मौजूदा सीएम सिद्धारमैया (Siddaramaiah) अपनी सीट पर डटे हुए हैं, और दूसरी तरफ 'डिप्टी साहब' यानी डीके शिवकुमार (D.K. Shivakumar) को वो वादा याद आ रहा है जो (कथित तौर पर) सरकार बनते वक्त किया गया था—"ढाई साल तुम, ढाई साल हम"।

लेकिन इस बार कहानी में एक नया और दिलचस्प मोड़ आ गया है। ख़बरों की मानें तो कांग्रेस के अंदर ही एक चर्चा चल रही है जिसमें डीके शिवकुमार को इशारों-इशारों में एक "पुरानी कहानी" सुनाई गई है। यह कहानी किसी और राज्य की नहीं, बल्कि कांग्रेस शासित रहे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की है। और यकीन मानिए, यह कहानी डीके के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं है।

आखिर क्या है वो 'छत्तीसगढ़ वाली कहानी'?

अगर आपको याद हो, तो 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती थी। वहां भी दो दावेदार थे— भूपेश बघेल और टी.एस. सिंहदेव (T.S. Singh Deo)। वहां भी (ऐसा कहा जाता है) यही तय हुआ था कि पहले ढाई साल बघेल सीएम रहेंगे और बाकी ढाई साल सिंहदेव।

लेकिन जब ढाई साल पूरे हुए, तो क्या हुआ? भूपेश बघेल कुर्सी से हिले भी नहीं। टी.एस. सिंहदेव दिल्ली के चक्कर काटते रह गए, हाईकमान से गुहार लगाते रहे, लेकिन उन्हें कभी सीएम की कुर्सी नहीं मिली। अंत में, चुनाव से ठीक पहले उन्हें 'डिप्टी सीएम' का लॉलीपॉप दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और पार्टी चुनाव हार गई।

डीके शिवकुमार को क्या इशारा मिला?

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि डीके शिवकुमार को यह उदाहरण देकर समझाया जा रहा है कि "राजनीति में जो गद्दी पर बैठ गया, उसे हटाना लोहे के चने चबाने जैसा है।" जो शख्स डीके को यह कहानी सुना रहा है, उसका मतलब साफ़ है अगर आप (डीके) अभी कड़ा रुख नहीं अपनाएंगे या हाईकमान पर भरोसा करके बैठ जाएंगे, तो आपका हाल भी टी.एस. सिंहदेव जैसा हो सकता है।

सीधे शब्दों में कहें तो संदेश यह है: "इतिहास गवाह है, नंबर 2 अक्सर इंतज़ार करते-करते नंबर 2 ही रह जाता है।"

सिद्धारमैया का पलड़ा भारी?

सिद्धारमैया कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। वो मास लीडर हैं और अहिंदा (AHINDA) वोट बैंक पर उनकी पकड़ मजबूत है। वहीं, डीके शिवकुमार 'संकटमोचक' और बेहतरीन मैनेजर ज़रूर हैं, लेकिन सीएम की कुर्सी सिर्फ़ मैनेजमेंट से नहीं मिलती। छत्तीसगढ़ में हाईकमान ने बघेल को नहीं हटाया क्योंकि उन्हें डर था कि सरकार गिर न जाए। कर्नाटक में भी सिद्धारमैया खेमा इसी डर का फायदा उठा सकता है।

डीके के लिए चिंता की बात यह भी है कि लोकसभा चुनाव में कर्नाटक (खासकर डीके के अपने गढ़) में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। यह बात उनके दावे को थोड़ा कमजोर करती है।

आगे क्या?

फिलहाल तो डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया, दोनों दिल्ली दरबार की परिक्रमा कर रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कर्नाटक में भी "छत्तीसगढ़ वाला नाटक" दोहराया जाएगा, या फिर डीके शिवकुमार अपनी होशियारी से अपनी क़िस्मत बदल पाएंगे?

 

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