Jharkhand Politics : दूध पिलाओगे तो जहर ही निकलेगा, महुआ माजी का वो भाषण जिसने संसद में खलबली मचा दी

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News India Live, Digital Desk : संसद के शीतकालीन सत्र में चर्चाएं तो रोज होती हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ भाषण ऐसे होते हैं जो दिल और दिमाग दोनों पर छाप छोड़ जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की राज्यसभा सांसद महुआ माजी (Mahua Maji) बोलने खड़ी हुईं।

सदन में परमाणु ऊर्जा (संशोधन) विधेयक या जिसे अब 'शांति बिल' कहा जा रहा है, उस पर बहस चल रही थी। महुआ माजी ने जिस तेवर में झारखंड के आदिवासियों और स्थानीय लोगों का पक्ष रखा, उसने सरकार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए "सांप" की मिसाल दी।

"सांप को दूध पिलाना खतरनाक है"
महुआ माजी ने सरकार को आगाह करते हुए एक बहुत ही कड़वी बात कही। उन्होंने कहा कि परमाणु ऊर्जा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों (निजी क्षेत्र) को लाना बहुत खतरनाक हो सकता है।

उन्होंने कहा, "आप निजी कंपनियों को खुली छूट दे रहे हैं, लेकिन याद रखिये, अगर हम सांप को दूध पिलाएंगे तो वो अंत में हमें ही डसेगा। प्राइवेट कंपनियों का मकसद सिर्फ मुनाफा होता है, उन्हें जनता की सुरक्षा या पर्यावरण से कोई लेना-देना नहीं होता।"

महुआ माजी का इशारा साफ था— अगर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम नहीं किए गए, तो यह फैसला भविष्य में देश और खासकर स्थानीय लोगों के लिए घातक साबित होगा।

जादूगोड़ा का दर्द और विकलांग बच्चे
अपने भाषण के दौरान महुआ माजी ने झारखंड के जादूगोड़ा (Jadugoda) का ज़िक्र किया, जो यूरेनियम खनन के लिए जाना जाता है। उन्होंने वहां की भयावह तस्वीर पेश की।
उन्होंने बताया कि कैसे सरकारी देखरेख में भी वहां रेडिएशन (Radiation) की वजह से बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं, लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं और कैंसर फैल रहा है।

उनका तर्क था कि जब सरकारी कंपनियां (UCIL) ही वहां के लोगों को सुरक्षित नहीं रख पा रही हैं, तो प्राइवेट कंपनियां क्या करेंगी? क्या वो सुरक्षा पर खर्च करेंगी या अपना मुनाफा देखेंगी?

"हमारा दर्द कौन समझेगा?"
महुआ माजी ने सवाल उठाया कि देश की तरक्की के लिए झारखंड बिजली और कोयला तो दे रहा है, लेकिन बदले में वहां के लोगों को सिर्फ विस्थापन और बीमारी मिल रही है। उन्होंने सरकार से मांग की कि किसी भी नए कानून को लागू करने से पहले वहां रहने वाले गरीबों की सुरक्षा की 'लिखित गारंटी' ली जाए।

सरकार को नसीहत
उन्होंने साफ लफ्जों में कहा कि विकास जरूरी है, लेकिन वो विकास किस काम का जो इंसानी जान की कीमत पर हो? उनकी यह चेतावनी कि "अनियंत्रित प्राइवेटाइजेशन एक दिन हमें डस लेगा," अब सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है।

वैसे महुआ माजी अक्सर अपनी बेबाक और साहित्यिक शैली के लिए जानी जाती हैं, और इस बार भी उन्होंने दिखा दिया कि झारखंड की आवाज़ दिल्ली में कमजोर नहीं है।

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