Jharkhand Politics : क्या हेमंत के खास सांसद को है मलाल? बोले जो बिहार में हुआ, उसकी टीस तो खटकती है

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News India Live, Digital Desk : राजनीति में वफादारी और कुर्बानी के किस्से अब कम ही सुनने को मिलते हैं। अक्सर कुर्सी की दौड़ में नेता दल और दिल दोनों बदल लेते हैं। लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के राज्यसभा सांसद डॉ. सरफराज अहमद (Dr. Sarfaraz Ahmad) उन नेताओं में से हैं जिन्होंने अपनी पार्टी के लिए बड़ा त्याग किया था। उन्होंने गांडेय विधानसभा सीट छोड़ दी थी ताकि हेमंत सोरेन की पत्नी, कल्पना सोरेन वहां से चुनाव लड़ सकें।

अब, जबकि झारखंड में सरकार स्थिर है और काम चल रहा है, सरफराज अहमद का एक बयान चर्चा में आ गया है। इस बयान में झारखंड की नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य बिहार (Bihar) की सियासत का जिक्र है, और उसमें एक अजीब सी "टीस" (दर्द) छुपी हुई है।

"बिहार वाली घटना भूल नहीं पाया हूँ"

हाल ही में मीडिया से बात करते हुए सरफराज अहमद ने दबी जुबान में अपने दिल की बात कही। जब उनसे राजनीतिक समीकरणों और वफादारी पर सवाल हुआ, तो उन्होंने बिहार का उदहारण दिया। उनका कहना था, "बिहार में जो कुछ हुआ, उसकी टीस तो मन में है ही।"

अब सवाल ये उठता है कि वो बिहार की किस घटना की बात कर रहे हैं? सियासी जानकारों का मानना है कि उनका इशारा नीतीश कुमार के पाला बदलने या महागठबंधन की सरकार गिरने की तरफ हो सकता है। एक तरफ झारखंड में जेएमएम और गठबंधन के साथी मुश्किल वक्त में भी चट्टान की तरह साथ खड़े रहे, वहीं बिहार में जिस तरह रातों-रात सरकारें बदल गईं, वो एक वफादार सिपाही को "खटकता" ज़रूर है।

कुर्बानी पर क्या बोले?

सरफराज अहमद ने अपनी सीट छोड़ने को लेकर भी बड़ी सादगी से बात की। उन्होंने कहा कि उन्होंने जो किया वो पार्टी हित में था और एक वफादार कार्यकर्ता होने के नाते यह उनका फर्ज था। लेकिन उनकी बातों में कहीं न कहीं यह भाव ज़रूर दिखा कि राजनीति में भरोसे का खून नहीं होना चाहिए।

उनका यह बयान इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि वो एक मझे हुए राजनेता हैं और 1980 के दशक से राजनीति देख रहे हैं। जब ऐसा नेता "टीस" शब्द का इस्तेमाल करता है, तो उसके पीछे गहरा अनुभव और शायद थोड़ी निराशा छुपी होती है।

झारखंड बनाम बिहार

सरफराज अहमद ने बातों ही बातों में यह समझाने की कोशिश की कि झारखंड में गठबंधन ने एकता की मिसाल पेश की है, जबकि बिहार की अस्थिरता लोकतंत्र के लिए दुखद है। यह बयान उन नेताओं के लिए एक आईना है जो अपने स्वार्थ के लिए जनता का जनादेश ठोकर मार देते हैं।

खैर, सियासत में 'दर्द' भी होते हैं और 'दवा' भी कुर्सी ही होती है। देखना होगा कि सरफराज अहमद की यह "टीस" आने वाले दिनों में क्या रंग दिखाती है।

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