Jharkhand cuisine : झारखंड की मडुवा और छिलका रोटी अब दुनिया पर करेंगी राज, GI टैग से मिलेगी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

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News India Live, Digital Desk: Jharkhand cuisine :  झारखंड की रसोई की सोंधी खुशबू अब सिर्फ राज्य तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि जल्द ही यह पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना सकती है। राज्य के दो सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक व्यंजन, मडुवा की रोटी (Madua ki Roti) और छिलका रोटी (Chilka Roti), को अब 'जीआई टैग' (Geographical Indication) दिलाने की तैयारी शुरू हो गई है। यह एक ऐसा कदम है जो इन साधारण से दिखने वाले व्यंजनों को दार्जिलिंग की चाय और बनारसी साड़ी जैसा खास दर्जा दिलाएगा।

क्या है मडुवा और छिलका रोटी की खासियत?

झारखंड के लगभग हर घर में मडुवा और छिलका रोटी सिर्फ खाना नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा का हिस्सा हैं।

  • मडुवा (रागी) की रोटी: यह गहरे भूरे रंग की रोटी न सिर्फ अपने अनूठे स्वाद के लिए, बल्कि अपने स्वास्थ्य लाभों के लिए भी जानी जाती है। यह ग्लूटन-फ्री होती है और इसमें कैल्शियम, आयरन और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए तो इसे रामबाण माना जाता है।
  • छिलका रोटी: चावल के आटे से बनी यह पतली और मुलायम रोटी झारखंड का पसंदीदा नाश्ता है। इसे बनाना आसान है और इसे अक्सर टमाटर की चटनी या आलू की सब्जी के साथ खाया जाता है। इसका स्वाद कुछ-कुछ डोसे जैसा होता है, लेकिन यह उससे भी नरम होती है।

क्या होता है GI टैग और इससे क्या फायदा होगा?

आसान भाषा में समझें तो, GI टैग किसी भी उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान देने का एक तरीका है। यह इस बात का प्रमाण होता है कि वह उत्पाद उसी खास इलाके में पैदा होता है या बनाया जाता है और उसकी क्वालिटी, स्वाद और बनाने का तरीका उसी क्षेत्र की विशेषता है।

GI टैग मिलने से ये फायदे होंगे:

  • अंतर्राष्ट्रीय पहचान: इन रोटियों को एक ग्लोबल पहचान मिलेगी और कोई भी दूसरा राज्य या देश इनके नाम का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा।
  • किसानों को फायदा: मडुवा उगाने वाले किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिलेगा।
  • रोजगार बढ़ेगा: ग्रामीण महिलाओं और स्थानीय उद्यमियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
  • पर्यटन को बढ़ावा: झारखंड का पारंपरिक भोजन दुनिया भर के फूड लवर्स को अपनी ओर आकर्षित करेगा।

कौन कर रहा है यह पहल?

इस महत्वपूर्ण काम का बीड़ा रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) ने उठाया है। विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ, खासकर डॉ. शत्रुंजय कुमार सिंह के नेतृत्व में एक टीम, इन दोनों व्यंजनों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ों पर रिसर्च कर रही है। वे एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं, जिसे चेन्नई स्थित जीआई टैग रजिस्ट्री कार्यालय में जमा किया जाएगा।

यह सिर्फ दो रोटियों की कहानी नहीं है, यह झारखंड की पहचान, संस्कृति और स्वाद को दुनिया के नक्शे पर स्थापित करने की एक बड़ी पहल है।

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