India-US Relations : अमेरिका ने जोड़े भारत के आगे हाथ? बोला- मोदी जी, शांति के लिए हमें आपका साथ चाहिए

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News India Live, Digital Desk: India-US Relations : चीन में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ गर्मजोशी से मिल रहे थे, तो उसकी तपिश सात समंदर पार अमेरिका तक महसूस की जा रही थी. इस तिकड़ी की मुलाकातों से बौखलाए अमेरिका ने अब भारत से सीधी और स्पष्ट अपील की है. व्हाइट हाउस के शीर्ष व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा है कि दुनिया में "शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर गुजरता है" और भारत को यह तय करना होगा कि वह रूस और चीन जैसे देशों के साथ खड़ा है या अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ.

यह बयान शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी, पुतिन और जिनपिंग की मुलाकातों के बाद आया है, जिसे अमेरिका अपने लिए एक रणनीतिक झटके के तौर पर देख रहा है. नवारो का यह बयान भारत के लिए एक खुली पेशकश भी है और एक चेतावनी भी.

'यह शर्म की बात है', क्यों भड़का अमेरिका?

पीटर नवारो ने पीएम मोदी के पुतिन और जिनपिंग से मिलने पर अपनी नाराजगी छिपाए बिना इसे "शर्मनाक" बताया.[1][2][3] उन्होंने कहा, "यह देखना शर्म की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता मोदी, दुनिया के दो सबसे बड़े तानाशाहों पुतिन और शी जिनपिंग के साथ जा रहे हैं."[3] नवारो ने सवाल उठाया कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि पीएम मोदी आखिर क्या सोच रहे हैं, खासकर तब जब दशकों से भारत और चीन के बीच तनाव रहा है.[3]

अमेरिका की इस बौखलाहट के पीछे कई कारण हैं, जिसमें सबसे प्रमुख भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना और अमेरिका के साथ चल रहा व्यापारिक तनाव है. नवारो ने भारत को "टैरिफ का महाराजा" और "क्रेमलिन (रूस) का लॉन्ड्रोमैट" तक कह डाला. उनका आरोप है कि भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर, उसे रिफाइन कर यूरोप और अन्य देशों में ऊंचे दामों पर बेच रहा है, जिससे रूस को उसके युद्ध के लिए पैसा मिल रहा है.

"शांति का रास्ता दिल्ली से..." भारत को क्यों दे रहा अमेरिका इतनी अहमियत?

अपनी तीखी आलोचना के बीच, नवारो ने एक ऐसी बात कही जो भारत के बढ़ते वैश्विक कद को दिखाती है. उन्होंने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि वह (मोदी) यह समझेंगे कि उन्हें हमारे साथ, यूरोप और यूक्रेन के साथ रहने की जरूरत है, रूस के साथ नहीं.”"शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर गुजरता है," इस बयान का सीधा मतलब है कि अमेरिका यह मान रहा है कि भारत आज एक ऐसी वैश्विक शक्ति है, जिसके समर्थन के बिना दुनिया में शांति स्थापित नहीं की जा सकती.

अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को छोड़कर रूस-चीन के खिलाफ बने पश्चिमी गुट में शामिल हो जाए. वह भारत को यह संदेश दे रहा है कि दुनिया के 'विश्व गुरु' के तौर पर यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह लोकतांत्रिक देशों का साथ दे.

क्या भारत पर होगा असर?

हालांकि, भारत ने हमेशा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर दिया है.प्रधानमंत्री मोदी पहले भी कह चुके हैं कि भारत के संबंध किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखे जा सकते. भारत सरकार का हमेशा से यह मानना रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को देखकर ही फैसले लेगी. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका के इस सीधे दबाव और भावनात्मक अपील का भारत की विदेश नीति पर क्या असर पड़ता है.

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