Iconic TV Role : घर-घर की ‘बा’ सुधा शिवपुरी, एक अद्भुत कलाकार और प्रेरणादायी जीवन की कहानी

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News India Live, Digital Desk: आज (17 मई) हिंदी सिनेमा और टेलीविजन जगत की एक ऐसी महान अदाकारा को याद करने का दिन है, जिन्होंने 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में अपनी 'बा' की भूमिका से करोड़ों दिलों पर राज किया। सुधा शिवपुरी ने न केवल अपने अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि अपनी सादगी और जीवटता से भी एक अमिट छाप छोड़ी।

दिल्ली में जन्मी सुधा शिवपुरी का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा। छोटी उम्र में ही पिता के निधन के बाद परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उनकी माँ, जो खुद थिएटर से जुड़ी थीं, पर आ गई थी। लेकिन बाद में यह जिम्मेदारी युवा सुधा पर आ गई, जिसके कारण उन्हें बेहद कम उम्र में ही अभिनय के क्षेत्र में उतरना पड़ा ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके।

अपनी मां से अभिनय की कला सीखते हुए सुधा शिवपुरी ने रंगमंच पर एक गहरी पकड़ बनाई। 1968 में उन्होंने जाने-माने अभिनेता और निर्देशक ओम शिवपुरी से विवाह किया। इस कलाकार दंपति ने मिलकर 'दिशान्तर' नाम से एक थिएटर ग्रुप की स्थापना की, जिसने भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भले ही उन्होंने शुरुआती पहचान थिएटर से बनाई, लेकिन टेलीविजन ने उन्हें घर-घर का जाना-पहचाना नाम बना दिया। 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में 'बा' का उनका किरदार भारतीय टेलीविजन के इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित किरदारों में से एक बन गया। इस आध्यात्मिक और प्यार भरी दादी की भूमिका ने उन्हें इतनी लोकप्रियता दिलाई कि लोग उन्हें असली में भी 'बा' कहने लगे थे। इस शो के अलावा, उन्होंने 'कसम से', 'तेरे मेरे सपने', 'विरुद्ध', 'किस देश में है मेरा दिल' और 'एक थी राजकुमारी' जैसे कई अन्य लोकप्रिय धारावाहिकों में भी यादगार भूमिकाएं निभाईं।

2015 में इस दुनिया को अलविदा कहने वाली सुधा शिवपुरी ने न केवल अभिनय की दुनिया में एक बड़ा नाम कमाया, बल्कि अपनी ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करते हुए एक मिसाल भी कायम की। उनका काम और उनके जीवन की कहानी आज भी कलाकारों और आम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है।

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