गांधारी ने कैसे जन्म दिए सौ पुत्रों को? कौरवों के जन्म की वो चौंकाने वाली पौराणिक कथा

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News India Live, Digital Desk: महाभारत की कथा जितनी विशाल है, उतनी ही हैरान करने वाली भी. इस महाकाव्य में एक महत्वपूर्ण किरदार हैं गांधारी, जो हस्तिनापुर के धृतराष्ट्र की पत्नी और सौ कौरवों की माता थीं. लेकिन एक गर्भवती महिला भला सौ बच्चों को कैसे जन्म दे सकती है? क्या उन्होंने नौ महीने का सामान्य गर्भधारण किया था? आइए जानते हैं कौरवों के जन्म से जुड़ी वो रहस्यमयी और अलौकिक पौराणिक कथा.

महर्षि वेदव्यास का आशीर्वाद और गांधारी का अनोखा प्रण

पौराणिक कथाओं के अनुसार, धृतराष्ट्र जन्म से नेत्रहीन थे, इसलिए जब उनका विवाह गांधारी से हुआ, तो गांधारी ने भी आजीवन अपनी आंखों पर पट्टी बांधे रखने का प्रण लिया. वह एक ऐसी आदर्श पत्नी थीं, जो अपने पति के हर दुख-दर्द में साथ खड़ी थीं. एक बार, गांधारी ने अपनी निस्वार्थ सेवा से महर्षि वेदव्यास को प्रसन्न कर दिया. वेदव्यास ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, "तुम्हें सौ बलशाली पुत्रों की मां बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा." गांधारी इस आशीर्वाद से बेहद प्रसन्न हुईं, क्योंकि उन्हें भी संतान की तीव्र इच्छा थी.

गर्भधारण का रहस्य और युधिष्ठिर का जन्म

कुछ समय बाद, गांधारी गर्भवती हुईं. लेकिन उनकी गर्भावस्था का काल सामान्य नहीं था. उन्होंने नौ महीने की बजाय करीब दो साल तक गर्भ धारण किए रखा. इसी बीच, रानी कुंती (पांडु की पत्नी) ने धर्मराज युधिष्ठिर को जन्म दे दिया. यह देखकर गांधारी बहुत विचलित और अधीर हो गईं. उन्होंने सोचा कि यदि उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई, तो वे पति और वेदव्यास के आशीर्वाद को पूरा नहीं कर पाएंगी. इस चिंता में, उन्होंने आवेश में आकर अपने पेट पर जोर से प्रहार किया, जिसके कारण उनका गर्भ गिर गया.

मिट्टी का मांस पिंड और वेदव्यास का चमत्कार

गांधारी के गर्भ से एक मांस का पिंड बाहर आया, जिसमें कोई शिशु नहीं था. यह देखकर गांधारी बेहद निराश हुईं. तभी महर्षि वेदव्यास वहां प्रकट हुए. जब उन्हें सारी बात पता चली, तो उन्होंने गांधारी को शांत कराया और मांस पिंड को 101 बराबर भागों में काटने का निर्देश दिया. वेदव्यास ने उन सभी टुकड़ों को घड़ों में रखकर विशेष मंत्रों का जाप किया और उन्हें गुप्त रूप से भूमि में दबाने को कहा. यह भी कहा गया कि इन घड़ों से सौ पुत्रों और एक पुत्री (दुशला) का जन्म होगा.

वेदव्यास के इस अद्भुत चमत्कार के कारण, कुछ समय बाद उन घड़ों से एक-एक करके बालक और बालिका का जन्म हुआ, जो कौरव कहलाए. इस तरह, गांधारी ने नौ महीने की बजाय दो साल के गर्भकाल और वेदव्यास के आशीर्वाद से सौ पुत्रों (कौरवों) और एक पुत्री दुशला को जन्म दिया. धृतराष्ट्र और गांधारी को संतानहीनता के दुःख से मुक्ति मिली, लेकिन इन्हीं पुत्रों के कारण आगे चलकर महाभारत का विनाशकारी युद्ध हुआ.

यह कथा हमें बताती है कि कैसे दैवीय शक्ति और असाधारण संकल्प के कारण प्राकृतिक नियमों को भी बदला जा सकता है. यह गांधारी के त्याग, पतिव्रता धर्म और संतान के लिए उनके तीव्र मोह को भी दर्शाती है.

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