"दादी अब नाम भूलने लगी हैं... बुढ़ापे में तो होता ही है!" - डिमेंशिया से जुड़ा यह ‘झूठ’ आपके अपनों की जिंदगी बर्बाद कर सकता है

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हमारे घरों में जब कोई बुजुर्ग बार-बार चीजें रखकर भूलने लगता है, या हाल ही में हुई बातें याद नहीं रख पाता, तो हम अक्सर यह कहकर बात टाल देते हैं - "अरे, उम्र हो गई है, अब याददाश्त तो कमजोर होगी ही।"

लेकिन रुक जाइए! यह सोच जितनी आम है, उतनी ही गलत और खतरनाक भी हो सकती है। हर भूलने की आदत सिर्फ बुढ़ापा नहीं होती। यह डिमेंशिया (Dementia) नामक दिमाग की एक गंभीर बीमारी का शुरुआती संकेत हो सकता है।

डिमेंशिया सिर्फ ‘भूलना’ नहीं है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें दिमाग की कोशिकाएं (cells) धीरे-धीरे मरने लगती हैं, जिससे व्यक्ति की याददाश्त, सोचने की शक्ति, और रोजमर्रा के काम करने की क्षमता पर गहरा असर पड़ता है।

आज हम इस बीमारी से जुड़े कुछ सबसे बड़े भ्रम (Myths) और उनके पीछे के सच (Facts) को समझेंगे, ताकि हम अपने प्रियजनों की सही समय पर मदद कर सकें।

भ्रम #1: भूलना तो बुढ़ापे की निशानी है, यह कोई बीमारी नहीं है।

  • सच: नहीं! यह डिमेंशिया का सबसे बड़ा और सबसे खतरनाक भ्रम है। कभी-कभार चाबी रखकर भूल जाना या किसी का नाम जुबान पर न आना सामान्य हो सकता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपने बच्चों का नाम भूलने लगे, घर का रास्ता भूल जाए, या रोज के छोटे-छोटे काम (जैसे चाय बनाना) भी न कर पाए, तो यह सामान्य बुढ़ापा नहीं, बल्कि डिमेंशिया का लक्षण है।

भ्रम #2: डिमेंशिया और अल्जाइमर एक ही चीज हैं।

  • सच: इसे ऐसे समझिए - ‘डिमेंशिया’ एक बड़ी कैटेगरी (जैसे ‘गाड़ी’) है, और ‘अल्जाइमर’ उसका सबसे आम प्रकार (जैसे ‘मारुति’)। यानी, हर अल्जाइमर डिमेंशिया है, लेकिन हर डिमेंशिया अल्जाइमर नहीं होता। डिमेंशिया के और भी कई प्रकार होते हैं।

भ्रम #3: अब कुछ नहीं हो सकता, इसका कोई इलाज नहीं है।

  • सच: यह सच है कि डिमेंशिया को पूरी तरह से ठीक करने की कोई दवा अभी तक नहीं बनी है। लेकिन, यह सोचना कि ‘अब कुछ नहीं हो सकता’, बहुत बड़ी गलती है। सही दवाइयों और थेरेपी से इस बीमारी के बढ़ने की रफ्तार को काफी हद तक धीमा किया जा सकता है। प्यार, देखभाल और एक खुशनुमा माहौल देकर मरीज की जिंदगी को कई सालों तक बेहतर बनाया जा सकता है।

भ्रम #4: यह सिर्फ बहुत ज्यादा बूढ़े लोगों को ही होता है।

  • सच: हालांकि यह ज्यादातर 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में होता है, लेकिन यह 40 या 50 की उम्र में भी शुरू हो सकता है, जिसे ‘यंगर-ऑनसेट डिमेंशिया’ कहते हैं।

भ्रम #5: डिमेंशिया के मरीज को कुछ समझ नहीं आता।

  • सच: यह पूरी तरह गलत है। हो सकता है कि वे अपनी बातें ठीक से कह न पाएं या चीजें भूल जाएं, लेकिन वे भावनाओं को महसूस कर सकते हैं। वे प्यार, गुस्सा, खुशी और दुख, सब समझते हैं। इसलिए उनके साथ बेरुखी से नहीं, बल्कि और भी ज्यादा प्यार और सम्मान से पेश आना चाहिए।

तो क्या करें?
अगर आपको अपने घर में किसी भी बुजुर्ग में ऐसे लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें ‘बुढ़ापा’ समझकर नजरअंदाज न करें।

  • डॉक्टर से मिलें: बिना देर किए किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट (दिमाग के डॉक्टर) को दिखाएं।
  • धैर्य रखें: उनके साथ धैर्य और प्यार से पेश आएं। वे जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं।
  • माहौल को खुशनुमा बनाएं: घर का माहौल शांत और सकारात्मक रखें।

याद रखिए, डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति अपनी यादें खो रहा है, अपनी पहचान नहीं। आपकी थोड़ी सी जागरूकता और सही देखभाल, उनकी जिंदगी को कहीं ज्यादा आसान और सम्मानजनक बना सकती है।

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