Digital Dementia : हद से ज़्यादा स्क्रीन टाइम आपके दिमाग को कैसे नुकसान पहुंचा रहा है?

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News India Live, Digital Desk : आजकल हम सब अपने फोन, लैपटॉप और टीवी के साथ इतनी देर तक चिपके रहते हैं कि शायद ही कोई पल हो जब हम इनसे दूर रहते हों. ऑफिस हो, घर हो, या यहां तक कि घूमते-फिरते भी हमारी नज़रें अकसर स्क्रीन पर टिकी रहती हैं. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि तकनीक पर हमारी ये हद से ज़्यादा निर्भरता हमारे दिमाग पर कितना बुरा असर डाल रही है? मनोविज्ञान की दुनिया में एक नए खतरे की चर्चा तेज़ हो गई है, जिसे 'डिजिटल डिमेंशिया' कहा जा रहा है. यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ हमारी याददाश्त और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता, ठीक उसी तरह कमजोर पड़ने लगती है, जैसे डिमेंशिया के मरीज़ों में होता है, लेकिन इसकी वजह उम्र नहीं, बल्कि डिजिटल स्क्रीन का अत्यधिक इस्तेमाल है.

आखिर क्या है 'डिजिटल डिमेंशिया'?

'डिजिटल डिमेंशिया' कोई ऐसी बीमारी नहीं जिसमें आप हर बात पूरी तरह से भूल जाएं, बल्कि इसमें दिमाग का एक 'धुंधलापन' आ जाता है. लगातार स्क्रीन देखने और कई सारे काम एक साथ करने की कोशिश (मल्टीटास्किंग) करने से हमारे दिमाग पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ पड़ने लगता है. हम लगातार सूचनाओं की बाढ़ में घिरे रहते हैं और दिमाग को गहराई से सोचने या किसी चीज़ पर देर तक टिकने का मौका नहीं मिल पाता. इसका नतीजा होता है कि हमारी याददाश्त कमजोर पड़ने लगती है, हम चीज़ों को याद रखने में संघर्ष करते हैं और हमारा ध्यान आसानी से भटकने लगता है, यानी दिमाग हमेशा एक तरह के 'फॉग' (धुंध) में घिरा रहता है.

आप किन लक्षणों से पहचान सकते हैं इसे?

अगर आप भी नीचे दिए गए कुछ लक्षण महसूस करते हैं, तो हो सकता है आप 'डिजिटल डिमेंशिया' की शुरुआती गिरफ्त में आ रहे हों:

  • भूलने की बीमारी: छोटी-छोटी बातें, जैसे आपने अपनी चाबियां कहां रखीं, किसी का फोन नंबर, या पिछली मीटिंग की बात याद न रख पाना.
  • ध्यान केंद्रित न कर पाना: किसी एक काम पर ज़्यादा देर तक टिके रहना मुश्किल लगे, बार-बार मन भटके.
  • फैसले लेने में दिक्कत: सामान्य स्थितियों में भी फैसला लेने में परेशानी महसूस होना.
  • सोचने की धीमी गति: दिमाग में चीज़ें तेज़ी से प्रोसेस न हों, जैसे कुछ समझने या प्रतिक्रिया देने में सामान्य से ज़्यादा समय लगना.
  • असंतोष की भावना: लगातार सोशल मीडिया देखने के बाद भी खालीपन महसूस होना.

डिजिटल उपकरणों से कैसे पड़ रहा है ये असर?

जब हम किसी फोन, कंप्यूटर या टेबलेट पर लगातार कोई काम करते हैं तो हमारा दिमाग सतही जानकारी (superficial information) पर ज़्यादा ध्यान देता है और गहराई से विश्लेषण नहीं करता. उदाहरण के लिए, अब हमें किसी का फोन नंबर याद रखने की ज़रूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वह फोन में होता है. कोई पता याद रखने की बजाय हम गूगल मैप्स का इस्तेमाल करते हैं. ये चीज़ें भले ही हमारी ज़िंदगी आसान बनाती हैं, लेकिन ये हमारे दिमाग की उस क्षमता को कमजोर करती हैं जिससे वह सूचनाओं को गहराई से प्रोसेस करता है और याद रखता है.

कैसे बचें 'डिजिटल डिमेंशिया' से?

यह कोई लाइलाज बीमारी नहीं है. अपनी आदतों में थोड़ा सा बदलाव लाकर आप अपने दिमाग को फिर से तेज़ और स्वस्थ बना सकते हैं:

  1. स्क्रीन टाइम करें कम: हर दिन अपना स्क्रीन टाइम घटाएं. खासकर सोने से एक-दो घंटे पहले फोन और अन्य डिजिटल डिवाइस से दूरी बना लें.
  2. 'डिजिटल डिटॉक्स' करें: हफ्ते में एक दिन या महीने में कुछ घंटे 'डिजिटल डिटॉक्स' का अभ्यास करें. यानी, इस दौरान आप किसी भी डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल नहीं करेंगे.
  3. दिमाग को दें असली 'व्यायाम': किताब पढ़ें, बोर्ड गेम्स खेलें, पहेलियां सुलझाएं, पेंटिंग करें या कोई नया हुनर सीखें. ऐसी गतिविधियाँ आपके दिमाग को सोचने और याद रखने की आदत को फिर से मज़बूत करती हैं.
  4. प्रकृति से जुड़ें: बाहर घूमने जाएं, ताज़ी हवा लें. प्रकृति के करीब रहना तनाव कम करता है और दिमाग को शांति देता है.
  5. पर्याप्त नींद लें: पूरी और गहरी नींद हमारे दिमाग को रिचार्ज होने में मदद करती है.

याद रखें, तकनीक का इस्तेमाल सोच-समझकर करना ज़रूरी है. यह हमारी गुलाम है, हमें इसका गुलाम नहीं बनना है. अपने दिमाग की सेहत का ध्यान रखें और 'डिजिटल डिमेंशिया' के खतरे से बचें!

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