Chhattisgarh : क्या वाकई खत्म हो जाएगा वीआईपी कल्चर? छत्तीसगढ़ में अब सलाम और सलामी के तामझाम से मिली बड़ी राहत

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News India Live, Digital Desk : आपने अक्सर फिल्मों में या अपनी आंखों से किसी ज़िले के सरकारी सर्किट हाउस का नज़ारा देखा होगा। किसी बड़े मंत्री या अधिकारी की गाड़ी रुकती है, पुलिस की एक टुकड़ी कतार में खड़ी होती है, बैंड बजता है और 'सलामी' (Guard of Honour) दी जाती है। कड़कड़ाती ठंड हो या चुभती गर्मी, वर्दीधारी जवानों को घंटों पहले से इस तामझाम की तैयारी में जुटना पड़ता था। लेकिन छत्तीसगढ़ से एक ऐसी खबर आई है, जो बताती है कि अब 'साहब' वाला कल्चर धीरे-धीरे इतिहास बनने जा रहा है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मंत्रियों और सीनियर पुलिस अधिकारियों के लिए दी जाने वाली इस गार्ड ऑफ ऑनर की परंपरा को लगभग खत्म करने का निर्देश दे दिया है।

वजह सिर्फ 'बचत' नहीं, बदलाव की नीयत है
अक्सर देखा गया है कि इन औपचारिकताओं के चक्कर में ज़िले की पूरी पुलिस मशीनरी कई घंटों तक स़िर्फ एक वीआईपी के स्वागत में लगी रहती थी। मुख्यमंत्री और गृह विभाग का मानना है कि जवानों की ऊर्जा और उनका कीमती वक्त किसी को 'सलाम' ठोकने के बजाय जनता की सुरक्षा में लगना चाहिए। यह आदेश साफ करता है कि सरकार अब दिखावे की बजाय धरातल पर काम करना चाहती है।

ब्रिटिश दौर की वो आख़िरी छाप
गार्ड ऑफ ऑनर जैसी प्रथाएं हमें अंग्रेजों के जमाने की याद दिलाती हैं, जब राजाओं या गवर्नरों का रुतबा दिखाने के लिए पुलिस को लाइन में खड़ा किया जाता था। लोकतंत्र में जनता मालिक है और चुने हुए जनप्रतिनिधि उनके सेवक। ऐसे में, अपने ही लोगों के बीच जाने के लिए इतनी कड़ी सुरक्षा और इस तरह की शाही सलामी की प्रासंगिकता पर लंबे समय से सवाल उठ रहे थे। छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने इस प्रथा पर लगाम लगाकर एक बड़ा मनोवैज्ञानिक मैसेज दिया है।

जवानों और सिस्टम पर क्या होगा असर?
इस फैसले के बाद ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे पुलिसवालों ने एक दबी हुई राहत की सांस ली है। किसी मंत्री के आने पर न स़िर्फ फोर्स कम पड़ जाती थी, बल्कि लॉजिस्टिक और सुरक्षा का भी अतिरिक्त भार बढ़ जाता था। अब अधिकारी स़िर्फ अपना काम करने के लिए सीधे दफ्तर या मीटिंग स्थल पर जा पाएंगे। कोई स्वागत समारोह नहीं, कोई विशेष सलामी नहीं—स़िर्फ सीधा और सादा काम।

आम आदमी की सोच
जनता में भी इस फैसले को लेकर सकारात्मक रुख दिख रहा है। जब लोग सड़कों पर ट्रैफिक में फंसे होते हैं और देखते हैं कि पुलिस वीआईपी को सलामी देने में व्यस्त है, तो उनके मन में नाराजगी पनपती है। छत्तीसगढ़ का ये नया मॉडल अगर कामयाब रहता है, तो शायद आने वाले समय में दूसरे राज्य भी अपने 'लाल बत्ती' वाले दौर की इन आख़िरी निशानियों को अलविदा कह सकें।

अंततः, शक्ति का प्रदर्शन डंडों या सलामी में नहीं, बल्कि जनहित के कामों में दिखना चाहिए। छत्तीसगढ़ सरकार की ये 'सरल कूटनीति' एक आधुनिक और प्रगतिशील प्रशासन की ओर एक अच्छा संकेत है।

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