छत्तीसगढ़ में बहुत बड़ा सरेंडर एक साथ 41 लोगों ने हिंसा को कहा अलविदा

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News India Live, Digital Desk : आज सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ा दिन है, क्योंकि बीजापुर जो बातें बताईं, वो गौर करने लायक हैं। उनका कहना है कि वे नक्सली विचारधारा (Naxal Ideology) से पूरी (Bijapur) में एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 41 नक्सलियों (41 Naxalites) ने आत्मसमर्पण कर दिया है।

हिंसा छोड़ 'मुख्यधारा' में वापसी
सोचिए, जो हाथ कल तरह निराश हो चुके हैं। उन्हें समझ आ गया है कि बड़े नक्सली नेता सिर्फ उनका इस्तेमाल कर रहे हैं। जंगलों में भाग तक हथियार थामे हुए थे, आज उन्होंने पुलिस के सामने सिर झुकाकर सामान्य जिंदगी जीने का फैसला किया है। इनदौड़ की जिंदगी और हिंसा से उन्हें अब नफरत होने लगी थी।

उन्हें अहसास हो गया कि हिंसा नक्सलियों ने माना है कि माओवादी विचारधारा अब 'खोखली' (Hollow) हो चुकी है। जंगल की का रास्ता सिर्फ मौत की तरफ जाता है, जबकि बाहर की दुनिया में 'विकास' हो रहा है।

पुलिस की जिंदगी में न सुकून है, न भविष्य। वहां सिर्फ अंधेरा है और हर पल मौत का साया है।

पुलिस अधिकारियों के सामने जब ये सरेंडर करने आए, तो इनके चेहरों पर एक डर भी था और एक उम्मीद भी— 'नयी नीति' का असर
इस बड़ी कामयाबी के पीछे पुलिस और प्रशासन की मेहनत भी है। छत्तीसगढ़ सरकार की **अपने घर लौटने की उम्मीद।

क्यों बदल रहा है मन?
शायद आप सोच रहे होंगे कि अचानकपुनर्वास नीति (Rehabilitation Policy)** का असर अब दिखने लगा है। पुलिस गांवों में जाकर लोगों को समझा रही है इतना बड़ा बदलाव कैसे? इसके पीछे दो बड़ी वजहें हैं।
पहली, पुलिस का बढ़ता दबाव। पिछले कुछ समय, अभियान चला रही है कि "लौट आओ, सरकार आपकी मदद करेगी।"

इसी भरोसे की वजह से इन से बीजापुर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की नाक में दम कर रखा है। लगातार हो रहे ऑ 41 लोगों ने तय किया कि वे अब खौफ के साये में नहीं जिएंगे। वे अपनेपरेशन्स से नक्सली संगठन कमजोर पड़ रहे हैं।
दूसरी वजह है—सरकार की पुनर्वास नीति। सर परिवार के पास लौटना चाहते हैं, इज्जत की जिंदगी जीना चाहते हैं और अपने बच्चों को कलम-किताब देनाेंडर करने वाले नक्सलियों को यह भरोसा दिया जा रहा है कि अगर वे हिंसा छोड़ते हैं, तो सरकार उन्हें इज्जत चाहते हैं, न कि बंदूक।

कौन हैं ये सरेंडर करने वाले?
बताया जा रहा है कि की जिंदगी देगी, घर बनाने और रोजगार के लिए मदद मिलेगी। यह 'भरोसा' अब काम कर रहा है।

समाज के लिए अच्छा संकेत
सरेंडर करने वाले इन 41 लोगों में से कई लंबे समय से संगठन से इनमें से कई लोग लंबे समय से नक्सली संगठन के लिए काम कर रहे थे। कुछ पर ईनाम भी घोषित हो सकता है (आधिकारिक पुष्टि का इंतजार है)। इनके मुख्यधारा में आने से नक्सली संगठन को बीजापुर इलाके में बड़ा झटका लगा जुड़े थे। इनके वापस आने से न सिर्फ माओवादी संगठन की कमर टूटेगी, बल्कि इनके जरिए पुलिस को जंगल के कई और राज भी पता चल सकते हैं।

सबसे अच्छी बात यह है कि ये लोग अब अपने परिवार के पास है, क्योंकि जमीनी नेटवर्क इन्हीं स्थानीय लोगों से चलता था।

बस्तर के लिए अच्छे संकेत
दोस्तों, 41 लोगों का एक साथ हिंसा छोड़ना यह बताता है कि बस्तर के अंदरूनी इलाकों में अब सरकार की लौट सकेंगे। एक बूढ़ी मां को उसका बेटा वापस मिलेगा, एक पत्नी को उसका पति और बच्चों को उनके पिता। ब पहुंच बढ़ रही है। सड़कों का जाल बिछ रहा है और 'लाल आतंक' का दायरा सिकुड़स्तर के लिए इससे बड़ी जीत और क्या हो सकती है?

बदल रहा है बस्तर
यह घटना साबित करती है रहा है।

हम बस यही उम्मीद कर सकते हैं कि ये 'लौटे हुए पंछी' अब अपने समाज कि बस्तर अब बदल रहा है। वहां के लोग अब समझ चुके हैं कि विकास बंदूक से नहीं, बल्कि शांति से में घुल-मिल जाएंगे और बाकी बचे भटके हुए लोगों के लिए भी एक मिसाल बनेंगे। बंदूक छोड़कर हल उठाने का फैसला हमेशा स्वागत योग्य है।

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