Big action on Chanda Kochhar: icici बैंक की पूर्व CEO पर ₹6.4 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप, ट्रिब्यूनल ने दोषी ठहराया

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नई दिल्ली: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की एक हाई-प्रोफाइल शख्सियत, आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) चंदा कोचर के लिए एक बड़ा झटका लगा है। एक न्यायाधिकरण (tribunal) ने उन्हें ₹300 करोड़ के ऋण के बदले ₹6.4 करोड़ की रिश्वत लेने का दोषी पाया है। यह फैसला कोचर के खिलाफ लगे वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

हालांकि, उपलब्ध जानकारी के अनुसार, यह मामला मार्च 2025 में मनीकंट्रोल द्वारा प्रकाशित हुआ था, जो डी. वाई. पाटिल समूह के संबंध में है। यह मामला वीडियोकॉन समूह से संबंधित पिछली सीबीआई (CBI) जांच और आरोपों से थोड़ा अलग है, जहाँ भी कोचर पर आरोप लगे थे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि "ट्रिब्यूनल" द्वारा 'दोषी ठहराया' जाने का मतलब विशिष्ट अदालती फैसले के संदर्भ में स्पष्ट किया जाना चाहिए, जैसे कि विशेष न्यायाधीश द्वारा दिया गया फैसला या अपील अदालत का निर्णय।

मुख्य आरोप और जांच:
मनीकंट्रोल की रिपोर्टों के अनुसार, यह आरोप लगाया गया था कि डी. वाई. पाटिल समूह की कुछ कंपनियों को आईसीआईसीआई बैंक द्वारा ₹300 करोड़ का ऋण स्वीकृत किया गया था। इस ऋण के बदले में, कोचर पर यह आरोप है कि उन्हें डी. वाई. पाटिल समूह से ₹6.4 करोड़ का लाभ मिला। यह लाभ अक्सर एक अप्रत्यक्ष तरीके से ट्रांसफर किया जाता है, जैसे किसी संबंधित कंपनी में निवेश या संपत्ति की बिक्री के माध्यम से।

यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह फैसला देश के कॉर्पोरेट जगत और बैंकिंग क्षेत्र में शासन (governance) और नैतिकता के मानकों पर एक बार फिर सवाल उठाता है। ऐसे उच्च-स्तरीय अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप और उनका दोषी पाया जाना, निवेशकों और जनता के विश्वास पर गहरा असर डालता है।

आगे क्या?
इस तरह के मामलों में, आगे की कानूनी प्रक्रियाएँ और अपील की जा सकती हैं। हालांकि, एक ट्रिब्यूनल या अदालत द्वारा किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाना, उसके करियर और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर परिणाम होता है।

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