बलरामपुर डीएम की अर्जी खारिज, हाई कोर्ट का सख्त संदेश सरकारी सुस्ती अब नहीं चलेगी

Post

News India Live, Digital Desk: मामला उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले का है। यहाँ के जिलाधिकारी महोदय को अब कोर्ट की सख्ती का सामना करना पड़ा है। हाई कोर्ट ने उन पर जो जुर्माना (Cost/Fine) लगाया था, उसे वापस लेने से साफ़ इंकार कर दिया गया है। आइए, बिल्कुल आसान शब्दों में समझते हैं कि आखिर इतना बड़ा पंगा हुआ कैसे?

मामला क्या था?
दरअसल, यह पूरा किस्सा एक सरकारी कर्मचारी की सेवा (Service matter) से जुड़ा था। कोर्ट ने डीएम साहब से एक जवाब (जवाबी हलफनामा) माँगा था। कोर्ट बार-बार समय देती रही, लेकिन प्रशासन की तरफ से वो ज़रूरी जवाब दाखिल ही नहीं किया गया।

हम सब जानते हैं कि सरकारी कामों में अक्सर देरी होती है, जिसे 'लाल फीताशाही' कहते हैं। लेकिन कोर्ट को यह सुस्ती बिल्कुल पसंद नहीं आई। जब तय समय पर जवाब नहीं मिला, तो कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए डीएम पर जुर्माना (Cost) लगा दिया।

माफ़ी की अर्जी काम न आई
जुर्माना लगने के बाद, सरकारी वकील ने कोर्ट में अर्जी दी कि डीएम साहब पर लगा यह जुर्माना हटा लिया जाए (Recall Application)। उन्होंने शायद सोचा होगा कि रिक्वेस्ट करने पर कोर्ट मान जाएगा।

लेकिन इस बार जस्टिस (जज साहब) का मूड सख्त था। उन्होंने यह अर्जी (Recall Application) खारिज कर दी। कोर्ट का कहना साफ़ था कि जब आदेश दिया गया था, तो उसका पालन समय पर क्यों नहीं हुआ? यह सीधा संदेश है कि कोर्ट के समय की बर्बादी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

जेब से भरना पड़ेगा हर्जाना?
इस तरह के मामलों में जब कोर्ट 'कॉस्ट' लगाता है, तो उसका मतलब होता है कि अधिकारी को अपनी जिम्मेदारी न निभाने की सजा मिल रही है। यह सिर्फ पैसों की बात नहीं है, यह एक 'बैड एंट्री' या प्रतिष्ठा (Reputation) का सवाल भी बन जाता है। अब डीएम साहब को कोर्ट का यह आदेश मानना ही होगा।

क्या सबक मिलता है?
यह खबर यूपी के बाकी अफसरों के लिए भी एक बड़ा सबक है। जनता के कामों या कोर्ट के मामलों में फाइल दबाकर बैठ जाना अब पुराने जमाने की बात हो गई है। अगर आप सुस्त रहेंगे, तो कोर्ट का डंडा कभी भी चल सकता है।

फिलहाल, बलरामपुर के प्रशासनिक गलियारे में इस आदेश के बाद खलबली मची हुई है। सही भी है, कानून का डर होना ही चाहिए, तभी तो सिस्टम सही से चलेगा।

 

--Advertisement--