खैबर पख्तूनख्वा में सेना और जनता आमने सामने? पाकिस्तान में बड़ा खेला होने के संकेत

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News India Live, Digital Desk : हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। हर दिन वहां एक नया सियासी ड्रामा देखने को मिलता है। इस बार खबर ऐसी है जो वहां के लोकतंत्र की बची-खुची साख पर भी सवाल खड़े कर सकती है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (Khyber Pakhtunkhwa) प्रांत में इन दिनों जो हो रहा है, उसे देखकर लग रहा है कि वहां 'आर-पार' की लड़ाई शुरू हो चुकी है।

खबर आ रही है कि पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार खैबर पख्तूनख्वा (KP) में गवर्नर राज (Governor Rule) लगाने की तैयारी कर रही है। भारत में जिसे हम 'राष्ट्रपति शासन' कहते हैं, पाकिस्तान में उसे गवर्नर राज कहा जाता है। यानी वहां की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करके पावर सीधे केंद्र के हाथ में आ जाएगी।

आखिर नौबत यहाँ तक क्यों आई?

असल में, खैबर पख्तूनख्वा इमरान खान (Imran Khan) की पार्टी PTI का सबसे मजबूत गढ़ है। वहां के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर खुलेआम केंद्र सरकार और सेना को ललकार रहे हैं। हाल ही में इमरान खान की रिहाई की मांग को लेकर PTI ने एक बहुत बड़ा मार्च निकाला था, जिसमें हिंसा भी हुई थी।

केंद्र सरकार का आरोप है कि सीएम गंडापुर 'राज्य की मशीनरी' (सरकारी गाड़ियां, क्रेन, पुलिस) का इस्तेमाल सरकार गिराने और हिंसा फैलाने के लिए कर रहे हैं। शहबाज शरीफ की सरकार को लग रहा है कि अगर अब सख्त कदम नहीं उठाए, तो हालात हाथ से निकल जाएंगे और देश में गृहयुद्ध (Civil War) जैसी स्थिति बन सकती है।

इमरान समर्थकों का 'जुनून' और सरकार का 'डर'

जेल में बंद होने के बावजूद इमरान खान का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। उनके एक इशारे पर खैबर पख्तूनख्वा से हजारों की भीड़ इस्लामाबाद (Islamabad) की तरफ कूच कर रही है। सरकार को डर है कि अगर यह भीड़ राजधानी में घुस गई, तो तख्तापलट या भारी हिंसा हो सकती है। इसी 'डर' को खत्म करने के लिए गवर्नर राज का कार्ड खेला जा सकता है।

अगर गवर्नर राज लगा तो क्या होगा?

अगर शहबाज सरकार यह फैसला लेती है, तो PTI और उनके समर्थकों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा।

  1. बर्खास्तगी: मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर और उनकी कैबिनेट को तुरंत हटा दिया जाएगा।
  2. सड़क पर संग्राम: इमरान के समर्थक चुप बैठने वालों में से नहीं हैं, ऐसे में पुलिस और जनता के बीच खूनी झड़पें बढ़ सकती हैं।
  3. अर्थव्यवस्था का बाजा: पहले से ही कंगाली की हालत में जी रहे पाकिस्तान के लिए यह सियासी अस्थिरता जहर का काम करेगी।

क्या यह तानाशाही की आहट है?

जानकार मानते हैं कि चुनी हुई सरकार को गिराना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। लेकिन पाकिस्तान में 'लोकतंत्र' कितना जिंदा है, यह दुनिया जानती है। फिलहाल, वहां का माहौल बहुत गरम है। हर किसी की निगाहें इस्लामाबाद पर टिकी हैं कि क्या सरकार सच में इतना बड़ा रिस्क लेगी?

पाकिस्तान की राजनीति पल-पल रंग बदल रही है। जैसे ही वहां से कोई नया अपडेट आएगा, हम आप तक जरूर पहुंचाएंगे।

 

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