19 मौतों के बाद झुकी नेपाल सरकार, सोशल मीडिया से बैन हटा, गृह मंत्री का इस्तीफा
आजकल सोशल मीडिया हमारी जिंदगी का एक ऐसा हिस्सा बन गया है जिसके बिना हम एक दिन भी गुजारने का सोच नहीं सकते। यह सिर्फ मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि लोगों के लिए अपनी आवाज उठाने का एक बड़ा प्लेटफॉर्म भी है। लेकिन सोचिए, अगर सरकार अचानक एक दिन फैसला करे और आपके पसंदीदा सोशल मीडिया ऐप्स पर पाबंदी लगा दे तो क्या होगा?
हमारे पड़ोसी देश नेपाल में ठीक ऐसा ही हुआ, लेकिन इसका अंजाम इतना दर्दनाक निकला जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
एक फैसला... और सड़कों पर उतर आए लोग
नेपाल सरकार ने हाल ही में देश में सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगाने का ऐलान कर दिया था। सरकार को लगा कि यह एक आम फैसला है, लेकिन यह उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
इस फैसले के खिलाफ पूरे देश में लोग गुस्से से भर गए और सड़कों पर उतर आए। छोटे-छोटे गांवों से लेकर बड़े-बड़े शहरों तक हर जगह जबरदस्त विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। लोगों का कहना था कि यह उनकी 'आवाज की आजादी' पर सीधा हमला है।
जब बात हाथ से निकल गई...
देखते ही देखते ये प्रदर्शन हिंसक हो गए। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच खौफनाक झड़पें हुईं, जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इस हिंसा और भगदड़ में 19 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
इन 19 मौतों की खबर ने जैसे आग में घी का काम किया। पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई और सरकार पर अपने ही फैसले को वापस लेने का भारी दबाव बन गया।
आखिरकार, सरकार को झुकना पड़ा
जनता के जबरदस्त गुस्से और अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे आखिरकार नेपाल सरकार को अपने घुटने टेकने पड़े। उन्होंने सोशल मीडिया पर से पाबंदी हटाने का ऐलान कर दिया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। इस पूरे वाकये और 19 मासूम जानों के जाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए, नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
यह वाकया पूरी दुनिया की सरकारों के लिए एक बहुत बड़ा सबक है कि आज के डिजिटल युग में जनता की आवाज को दबाना कितना मुश्किल और खतरनाक साबित हो सकता है।
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