इलाहाबाद हाईकोर्ट से अब्बास अंसारी को बड़ी राहत: नफरत फैलाने वाले भाषण मामले में बरी, MLA का दर्जा बहाल!
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम हुआ है, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी को नफरत फैलाने वाले भाषण (Hate Speech) के एक मामले में बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया है, जिसके बाद उनके विधायक पद की बहाली का रास्ता भी साफ हो गया है. यह फैसला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.
अब्बास अंसारी, जो मऊ सदर सीट से विधायक हैं, पिछले कुछ समय से कानूनी पचड़ों में फंसे हुए थे. उन पर कई गंभीर आरोप लगे थे, जिनमें से एक नफरत फैलाने वाले भाषण का मामला भी शामिल था. इस मामले में उनकी सजा या दोषसिद्धि (conviction) उनकी विधानसभा की सदस्यता पर खतरा पैदा कर सकती थी. लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस हालिया फैसले से उन्हें न केवल इन आरोपों से मुक्ति मिली है, बल्कि उनके विधायक के तौर पर काम करने का अधिकार भी वापस मिल गया है.
क्या था पूरा मामला?
यह मामला तब चर्चा में आया था जब विधायक अब्बास अंसारी पर कुछ जनसभाओं या सार्वजनिक मंचों पर ऐसे भाषण देने का आरोप लगा था, जिनसे समुदायों के बीच नफरत फैलाने या द्वेष बढ़ाने की आशंका जताई गई थी. भारतीय कानून में, नफरत फैलाने वाले भाषणों को गंभीर अपराध माना जाता है, खासकर जब वे सार्वजनिक शांति और सद्भाव को बिगाड़ने का जोखिम पैदा करते हों. ऐसे मामलों में नेताओं के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाती है, क्योंकि उनके बयानों का गहरा असर आम जनता पर पड़ता है.
जब किसी राजनेता को किसी ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाता है जिसमें 2 साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान हो, तो उनकी विधायकी या सांसद की सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाती है. इसके विपरीत, जब किसी मामले में उन्हें बरी कर दिया जाता है, तो वे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के हकदार हो जाते हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े सभी पक्षों की दलीलों को सुना. जांच के दौरान और सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष (prosecution) द्वारा पेश किए गए साक्ष्य (evidence) और तर्कों पर जिरह (cross-examination) के बाद, अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि विधायक अब्बास अंसारी के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह से साबित नहीं हुए हैं.
सूत्रों के मुताबिक, अदालत ने पाया कि या तो सबूत अपर्याप्त थे या फिर बयानों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था, जिसकी वजह से यह मामला 'रीज़नेबल डाउट' (reasonable doubt) की श्रेणी में आ गया. कानून का एक अहम सिद्धांत है कि 'हर आरोपी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसका अपराध सिद्ध न हो जाए.' इसी सिद्धांत के आधार पर, कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त (acquitted) कर दिया.
विधायक पद की बहाली: नई राह खुली
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मिली क्लीन चिट के बाद, अब अब्बास अंसारी के विधायक के तौर पर सभी अधिकार और कार्य फिर से शुरू हो जाएंगे. इसका मतलब है कि वे न केवल सदन में भाग ले सकेंगे, बल्कि अपने निर्वाचन क्षेत्र (const ituency) के विकास कार्यों और जनहित के मुद्दों पर पहले की तरह सक्रिय रह सकेंगे.
किसी भी राजनेता के लिए इस तरह के कानूनी मामलों से बरी होना उनके राजनीतिक जीवन में एक बड़ी राहत के तौर पर देखा जाता है. यह उनके कद को बढ़ाने और जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने का एक नया मौका देता है.
राजनीतिक मायने और भविष्य
अब्बास अंसारी, समाजवादी पार्टी (SP) या अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ जुड़े रहे हैं. इस फैसले के बाद, उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ सकती है और वह अपने क्षेत्र में और भी मजबूती से काम कर सकेंगे. यह फैसला उनके समर्थकों और पार्टी के लिए भी एक सकारात्मक खबर है.
इस घटनाक्रम से यह भी साफ होता है कि भारतीय न्यायपालिका कितनी सक्रिय है और कैसे वह संवैधानिक मर्यादाओं और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करती है.
--Advertisement--