भाई दूज के दिन क्यों होती है कलम-दवात की पूजा? जानें उस देवता की कहानी जो लिखते हैं आपके हर कर्म का हिसाब
दिवाली का पांच दिनों का त्योहार जब अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंचता है, तो एक नहीं बल्कि दो खास पर्व मनाए जाते हैं। एक तरफ बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं, तो दूसरी तरफ एक ऐसी पूजा होती है जो कलम, कागज और ज्ञान को समर्पित है। यह है चित्रगुप्त पूजा, जो इस साल भाई दूज के साथ यानी गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025को मनाई जाएगी।
खासकर कायस्थ समाज के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान चित्रगुप्त उनके इष्टदेव हैं। मान्यता है कि यही वो देवता हैं, जो दुनिया के हर प्राणी के अच्छे-बुरे कर्मों का पूरा लेखा-जोखा रखते हैं। चलिए, जानते हैं इस खास पूजा का शुभ मुहूर्त, आसान विधि और भगवान चित्रगुप्त के जन्म से जुड़ी वो चमत्कारी कथा।
पूजा का शुभ समय (मुहूर्त)
इस साल 23 अक्टूबर को पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार पूजा कर सकते हैं।
- सबसे शुभ मुहूर्त:दोपहर 01:13 बजे से दोपहर 03:28 बजे तक
- विजय मुहूर्त:दोपहर 01:58 बजे से दोपहर 02:43 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त:शाम 05:43 बजे से शाम 06:09 बजे तक
- ब्रह्म मुहूर्त:सुबह 04:45 बजे से सुबह 05:36 बजे तक
पूजा की सरल विधि
- सुबह नहा-धोकर साफ कपड़े पहन लें।
- घर में पूर्व दिशा की ओर एक लकड़ी की चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं।
- उस पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- उनके सामने घी का एक दीपक जलाएं और फूल, चंदन व धूप अर्पित करें।
- सबसे खास चीज- एक नया पेन या कलम और एक सादा कागज भी पूजा में जरूर रखें।
- अब भगवान की आरती करें और आरती के बाद उसी कलम से सादे कागज पर "श्री गणेशाय नमः" 11 बार लिखें।
कैसे हुआ भगवान चित्रगुप्त का जन्म? (उत्पत्ति कथा)
कहानी शुरू होती है सृष्टि की रचना से। जब भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, तो उन्होंने दुनिया की रचना शुरू की। उन्होंने देवता, असुर, इंसान, पशु-पक्षी बनाए। इसी कड़ी में उन्होंने धर्मराज यमराज को भी जन्म दिया, जिनका काम था जीवों को उनके कर्मों के अनुसार सजा देना।
जब यमराज का काम बहुत बढ़ गया, तो उन्होंने ब्रह्मा जी से एक ऐसे सहयोगी की मांग की जो ज्ञानी हो और कभी कोई गलती न करे। यमराज की यह मांग सुनकर ब्रह्मा जी गहरे ध्यान में चले गए। वे एक हजार साल तक तपस्या करते रहे। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं, तो उनके सामने एक दिव्य पुरुष खड़ा था, जिसके हाथों में कलम और दवात थी।
चूंकि इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया (शरीर) से हुआ था, इसलिए वे 'कायस्थ'कहलाए और उनका नाम 'चित्रगुप्त'पड़ा। तभी से भगवान चित्रगुप्त यमराज के सहयोगी के रूप में हर प्राणी के कर्मों का हिसाब रखने लगे।
एक कहानी जिसने क्रूर राजा का दिल बदल दिया
एक और कहानी एक राजा की है जिसका हृदय चित्रगुप्त पूजा से परिवर्तित हो गया। सौदास नाम का एक राजा बहुत अत्याचारी था, सारी प्रजा उससे नाखुश थी। एक दिन जब वह घूम रहा था, तो उसने एक ब्राह्मण को पूजा करते देखा। राजा ने उत्सुकता से पूछा, "तुम किसकी पूजा कर रहे हो?"
ब्राह्मण ने जवाब दिया, "आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है, मैं भगवान चित्रगुप्त की पूजा कर रहा हूं जो कर्मों का हिसाब रखते हैं और पापों से मुक्ति देते हैं।" राजा यह सुनकर हंस पड़ा और मजाक में उसने पूजा की सारी सामग्री भगवान चित्रगुप्त को चढ़ा दी।
लेकिन उस पूजा का असर ऐसा हुआ कि राजा का कठोर मन बदल गया। उसे अपनी गलतियों का एहसास हुआ। महल लौटकर उसने विधि-विधान से भगवान चित्रगुप्त का पूजन किया। कहते हैं, इस पूजा के प्रभाव से राजा अपने सभी पापों से मुक्त हो गया और मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग में स्थान मिला।
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