क्यों खुद को आग लगाना पड़ा सौम्या को, ओडिशा में कांग्रेस-BJP आमने-सामने
ओडिशा की एक कानून छात्रा सौम्या के दुखद मामले के आसपास की राजनीतिक बयानबाजी पर केंद्रित है। ऐसा प्रतीत होता है कि सौम्या, जो अपने कॉलेज में प्रोफेसर द्वारा कथित यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट करने के बाद छह महीने तक संघर्ष करती रही, अंततः न्याय न मिलने की निराशा में आत्मदाह का शिकार हो गई।
इस घटना ने राजनीतिक बहस छेड़ दी है:
संक्षेप में, वीडियो सौम्या की भयानक मौत और इसके कारण उत्पन्न हुए राजनीतिक विवाद को दर्शाता है, जिसमें आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है कि किस पक्ष ने क्या किया और क्या नहीं किया, और कैसे इस घटना को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
विपक्ष का आरोप (कांग्रेस): राहुल गांधी और पवन खेड़ा जैसे कांग्रेस नेताओं ने इस घटना को "सिस्टम द्वारा की गई हत्या" करार दिया है। उनका आरोप है कि कॉलेज प्रशासन, पुलिस और सत्ताधारी दल (भाजपा, जैसा कि वे संकेत दे रहे हैं) ने सबूतों को नजरअंदाज किया, महिला को धमकाया और प्रताड़ित किया, जिसके कारण उसने यह चरम कदम उठाया। वे इस मुद्दे को उठाते हुए भाजपा पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगा रहे हैं, खासकर पश्चिम बंगाल जैसे गैर-भाजपा शासित राज्यों में इसी तरह की घटनाओं पर प्रतिक्रिया की तुलना में।
सत्ता पक्ष का बचाव/आरोप (भाजपा): भाजपा नेता, जैसे धर्मेंद्र प्रधान और संभवतः अन्य, इस मामले के राजनीतिकरण का आरोप लगा रहे हैं। उनका तर्क है कि कांग्रेस इस संवेदनशील मुद्दे का इस्तेमाल राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए कर रही है। वे पलटवार में कहते हैं कि जब उनकी पार्टी सत्ता में होती है, तो इस तरह की आलोचना नहीं होती। वे शायद यह भी इशारा कर रहे हैं कि संबंधित राजनीतिक दल अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए ऐसे मामलों का इस्तेमाल करते हैं।
प्रमुख मुद्दे:
संस्थागत विफलता: क्या कॉलेज प्रशासन, पुलिस और अन्य संबंधित अधिकारी सौम्या की शिकायत को गंभीरता से संभालने में विफल रहे?
राजनीतिकरण: क्या राजनीतिक दल संवेदनशील घटनाओं का इस्तेमाल एक-दूसरे पर हमला करने या राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं?
मीडिया की भूमिका: मीडिया द्वारा इन घटनाओं को कैसे प्रस्तुत किया जा रहा है और क्या यह निष्पक्ष है?
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