Film Shooting : फिल्म में बेटे को मरा देखकर क्यों चीख उठीं Jaya Bachchan? सालों बाद खुला सबसे भावुक राज
News India Live, Digital Desk: Film Shooting : हम सबने जया बच्चन (Jaya Bachchan) को हमेशा एक सशक्त अभिनेत्री (actress) और मज़बूत माँ (mother) के रूप में देखा है। लेकिन एक बार फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें ऐसे भावुक पल से गुज़रना पड़ा था, जिसने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। वो पल जब उन्होंने पर्दे पर अपने 'मृत बेटे' के शरीर की पहचान की। उस समय उनके ज़ेहन में तुरंत अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) का ख़्याल आ गया और वे सच में डर गईं। यह कोई बनावटी नहीं, बल्कि माँ का असली डर था।
वो फ़िल्म, वो सीन और Jaya Bachchan का डर
यह किस्सा तब का है जब जया बच्चन एक फ़िल्म की शूटिंग कर रही थीं, जिसमें उन्हें अपने बेटे के 'शव' की पहचान करनी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस भावनात्मक पल को याद करते हुए बताया था कि जब वह सीन कर रही थीं, तो अचानक उनके दिमाग में आया, "ज़रा सोचिए, अभिषेक अगर ऐसे ही लेटा होता!" इस एक विचार से उन्हें इतना गहरा सदमा लगा कि वह काँप गईं।
जया बच्चन ने कहा, "मैंने ये महसूस किया और खुद से कहा कि 'ओह गॉड!' मुझे आज भी याद है कि मैंने वो लाइनें ऐसे बोल दी थीं, जो स्क्रिप्ट में नहीं थीं। बस अंदर से वो फीलिंग आ रही थी। वो (प्रोड्यूसर) बोल रहे थे, 'ओके ओके', क्योंकि उन्हें लगा कि वो तो अपने डायलॉग ही बोल रही हैं, लेकिन मैं बहुत रोई थी।" इस अभिनय के अनुभव ने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था।
एक माँ के लिए सबसे बड़ी त्रासदी का अहसास
उनकी बात सुनकर कोई भी माँ इस दर्द को महसूस कर सकती है। पर्दे पर भले ही यह एक भूमिका (role) थी, लेकिन एक माँ के लिए अपने बेटे को उस अवस्था में देखने का ख्याल ही रूह कंपा देता है। जया जी के लिए यह सिर्फ़ शूटिंग का एक दृश्य नहीं था, बल्कि अपनी सबसे बड़ी चिंता का प्रत्यक्ष अहसास था। उन्होंने बताया कि उस अनुभव के बाद भी वह एक लंबे समय तक उससे बाहर नहीं निकल पाई थीं।
वह यह सोचकर भी परेशान हो जाती थीं कि असल ज़िंदगी में अगर उन्हें ऐसी किसी स्थिति का सामना करना पड़े तो वह क्या करेंगी। वह उस दर्द की कल्पना से ही डर जाती थीं। यह दर्शाता है कि एक अभिनेत्री के तौर पर भी जया बच्चन कितनी भावुक और वास्तविक रही हैं। उनका यह किस्सा कई बॉलीवुड फैंस के लिए भी गहरा सबक है कि पर्दे पर जो हमें अभिनय लगता है, वह कलाकार के लिए अक्सर गहरे अनुभवों से भरा होता है। पर्दे के पीछे का सच कभी-कभी ज़्यादा मार्मिक होता है।
जया जी की यह बात हमें दिखाती है कि शोबिज़ की चमक-धमक के पीछे भी कलाकार उतने ही सामान्य और संवेदनशील होते हैं, जितनी कोई और माँ। मां-बेटे का रिश्ता किसी भी सीमा से परे होता है।
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