किस पायलट ने ईंधन की सप्लाई बंद की, नाम क्यों नहीं है रिपोर्ट में?

जब भी कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त होता है, तो सबसे पहले और सबसे आम तौर पर उंगली पायलट पर उठाई जाती है। यह आम धारणा है कि पायलट की कोई गलती ही हुई होगी, भले ही विमान के बाकी सिस्टम कितने ही उन्नत या भरोसेमंद क्यों न हों। लेकिन क्या हमेशा ऐसा होता है? क्या यह जांच का एक सुविधाजनक तरीका है? यह सवाल आजकल कई मामलों में उठता है, जब हम हवाई सुरक्षा से जुड़ी रिपोर्ट्स को देखते हैं।

ऐसी दुर्घटनाओं के बाद कई बार प्रारंभिक रिपोर्ट्स यह बताने लगती हैं कि विमान में सब कुछ ठीक था और पायलट ने कोई गलती की। मिसाल के तौर पर, कुछ रिपोर्टें ऐसी थीं जिनमें कहा गया कि अहमदाबाद क्रैश की प्रारंभिक रिपोर्ट में विमान की आपूर्ति और मौसम सब ठीक था। इसके बावजूद, ऐसी खबरें आईं कि शायद किसी ने गलत स्विच दबा दिया था या कोई दूसरा ही पेंच फंसा था। कुछ साल पहले 'जर्मनविंग्स' क्रैश का मामला लें, जहाँ माना गया कि पायलट ने खुद को कॉकपिट में बंद कर लिया था और विमान को क्रैश कर दिया। ऐसी घटनाओं को देखकर यह स्वाभाविक सवाल उठता है कि क्या वास्तव में सब ठीक था, या फिर कोई गहरी तकनीकी या मानवीय गलती हुई थी जिसे పైਲਟ पर दोष मढ़कर दबा दिया गया।

अगर हम इसी तरह की घटनाओं और खबरों को जोड़कर देखें, तो पता चलता है कि कभी-कभी जल्दी में नतीजे पर पहुँचने का चलन है। बोइंग 737 मैक्स जैसे विमानों के साथ जो घटनाएं हुईं, या जिस तरह से कभी पायलट के एकाकी पलों को, या उनकी ट्रेनिंग के कुछ पहलुओं को उठा कर किसी हादसे का सीधा कारण बताया जाता है, यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तविक समस्या की जड़ तक पहुंच रहे हैं?

इस मामले में जांच एजेंसियां चाहे जो कहें, लेकिन जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वो कई सवाल खड़े करते हैं। क्या ये सिर्फ एक पायलट की गलती थी या एयरलाइन की लापरवाही? या फिर उन सुरक्षा मानदण्डों को लेकर कोई कमी थी जिन्हें इतनी जल्दी दरकिनार कर दिया गया? हमें ऐसे हादसों में जवाबदेही तय करते हुए, सभी पहलुओं की बारीकी से जांच करने की आवश्यकता है, ताकि दोषियों को सज़ा मिले और भविष्य में ऐसी दुर्घटनाएं रोकी जा सकें। बिना पूरी तहकीकात के सिर्फ पायलट को दोषी ठहरा देना शायद जांच की सरलता हो सकती है, लेकिन निश्चित रूप से न्याय नहीं।

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