जब स्वामी विवेकानंद ने इंजीनियर दोस्त से बनवाया बेलूर मठ, स्वामी विज्ञानानंद की जयंती पर यादें हुईं ताज़ा

Post

News India Live, Digital Desk : एक सिविल इंजीनियर... जिसने प्रभु के लिए अपनी आलीशान नौकरी तिनके की तरह छोड़ दी." यह शब्द स्वामी विवेकानंद ने अपने एक ऐसे संन्यासी साथी के लिए कहे थे, जो संन्यास लेने से पहले एक बड़े सरकारी इंजीनियर थे और जिन्हें आज दुनिया स्वामी विज्ञानानंद के नाम से जानती है. बुधवार को इन्हीं स्वामी विज्ञानानंद की जयंती लखनऊ के रामकृष्ण मठ में बड़े ही श्रद्धाभाव और धूमधाम के साथ मनाई गई.

यह जयंती सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि उस महान संत को याद करने का अवसर थी, जो श्रीरामकृष्ण परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य, स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई और एक असाधारण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने ही स्वामी विवेकानंद के सपनों के बेलूर मठ का नक्शा तैयार किया और उसके निर्माण का पूरा कार्यभार संभाला था.

कौन थे स्वामी विज्ञानानंद?

स्वामी विज्ञानानंद का सांसारिक नाम हरिप्रसन्न चट्टोपाध्याय था. उनका जन्म दक्षिणेश्वर के पास एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. वह पढ़ाई में अव्वल थे और आगे चलकर एक बेहतरीन सिविल इंजीनियर बने. उन्होंने तत्कालीन संयुक्त प्रांत में जिला इंजीनियर के तौर पर काम किया, जो उस समय एक बहुत बड़ा पद माना जाता था. लेकिन बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्म की ओर था और श्रीरामकृष्ण परमहंस से मिलने के बाद उनका जीवन पूरी तरह बदल गया.

स्वामी विवेकानंद जब पश्चिम से लौटे तो उनके आह्वान पर हरिप्रसन्न ने अपनी प्रतिष्ठित नौकरी छोड़ दी और संन्यास लेकर स्वामी विज्ञानानंद बन गए. विवेकानंद उन पर बहुत भरोसा करते थे और उनकी इंजीनियरिंग की काबिलियत के कायल थे.

लखनऊ मठ में गूंजी स्वामी विज्ञानानंद की महिमा

लखनऊ के निराला नगर स्थित रामकृष्ण मठ में जयंती का कार्यक्रम सुबह मंगल आरती और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शुरू हुआ. इसके बाद मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानंद जी ने स्वामी विज्ञानानंद के जीवन और उनके योगदान पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि कैसे स्वामी विज्ञानानंद ने engineering और अध्यात्म का अद्भुत संतुलन अपने जीवन में साधा.

उन्होंने उस प्रसंग को भी याद किया जब स्वामी विवेकानंद ने बेलूर मठ का मंदिर बनाने की ज़िम्मेदारी विज्ञानानंद को सौंपते हुए कहा था कि यह मंदिर ऐसा होना चाहिए जिसमें मंदिर, मस्जिद और चर्च, सभी की वास्तुकला का संगम दिखे, ताकि यहां आने वाले हर धर्म के व्यक्ति को अपनापन महसूस हो. स्वामी विज्ञानानंद ने इस सपने को साकार कर दिखाया और आज बेलूर मठ सर्व-धर्म समभाव का एक अनूठा प्रतीक है.

कार्यक्रम का समापन भक्तिगीतों और प्रसाद वितरण के साथ हुआ, लेकिन यह जयंती हर किसी के मन में उस महान इंजीनियर-संत की यादों को ताज़ा कर गई, जिसने अपना पूरा जीवन गुरु और ईश्वर की सेवा में समर्पित कर दिया.

--Advertisement--