"संसद की छत से कूद जाऊंगा!" जब धर्मेंद्र का 'शोले' वाला वादा पड़ा उन्हीं पर भारी, 5 साल में ही कर ली राजनीति से तौबा!

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हिंदी सिनेमा के 'ही-मैन' धर्मेंद्र ने अपनी दमदार एक्टिंग और करिश्मे से दशकों तक बड़े पर्दे पर राज किया। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने फिल्मों के साथ-साथ राजनीति के अखाड़े में भी अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। साल 2004 में वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े, जीते और सांसद भी बने। लेकिन 5 साल का कार्यकाल पूरा होते-होते राजनीति से उनका ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने दोबारा इस तरफ मुड़कर भी नहीं देखा।

आखिर ऐसा क्या हुआ कि 'ही-मैन' ने सिर्फ 5 साल में ही हार मान ली? इसके पीछे की कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है, जितनी उनकी फिल्में।

'शाइनिंग इंडिया' से प्रभावित होकर बने नेता

साल 2004 में, धर्मेंद्र बीजेपी के 'शाइनिंग इंडिया' कैंपेन से बहुत प्रभावित हुए थे। उस समय वह शत्रुघ्न सिन्हा के साथ बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने पहुंचे, और यहीं से उनके राजनीतिक सफर की पटकथा लिखी गई। बीजेपी ने उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें राजस्थान की बीकानेर सीट से लोकसभा का टिकट दिया।

अपने स्टारडम के दम पर धर्मेंद्र ने कांग्रेस के उम्मीदवार को लगभग 60,000 वोटों के बड़े अंतर से हराकर शानदार जीत दर्ज की और दिल्ली की संसद पहुंच गए।

जब फिल्मी वादा बना गले की फांस

चुनाव प्रचार के दौरान धर्मेंद्र ने अपने फिल्मी अंदाज का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' के एक मशहूर सीन का जिक्र करते हुए जनता से वादा किया था कि अगर सरकार उनकी बातें नहीं मानेगी, तो वह संसद की छत पर चढ़कर कूद जाएंगे।

लेकिन जब वादे निभाने की बारी आई, तो कहानी कुछ और ही निकली। जीत के बाद धर्मेंद्र पर आरोप लगने लगे कि वह अपने संसदीय क्षेत्र बीकानेर में दिखाई ही नहीं देते। उनकी संसद में उपस्थिति भी बहुत कम रहती थी। बीकानेर की जनता अक्सर यह शिकायत करती थी कि उनके सांसद ज्यादातर समय मुंबई में अपनी फिल्मों की शूटिंग या अपने फार्महाउस पर ही बिताते हैं। इन आलोचनाओं ने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया।

क्यों हुआ राजनीति से मोहभंग?

5 साल का कार्यकाल जैसे-तैसे पूरा करने के बाद धर्मेंद्र ने 2009 में दोबारा चुनाव नहीं लड़ा और हमेशा के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया। कई सालों बाद, उनके बेटे सनी देओल ने एक इंटरव्यू में इसकी वजह का खुलासा किया था। सनी ने बताया कि उनके पिता को राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं आई और उन्हें चुनाव लड़ने का पछतावा था。

इसकी असली वजह का खुलासा खुद धर्मेंद्र ने भी एक बार किया था, जब उन्होंने कहा था, "काम मैं करता था, क्रेडिट कोई और ले जाता था। शायद ये जगह मेरे लिए नहीं थी।"

शायद यही राजनीति की वो कड़वी सच्चाई थी, जिसे धर्मेंद्र जैसा सीधा-सच्चा इंसान पचा नहीं पाया। वह समझ गए थे कि फिल्मों का 'ही-मैन' होना और राजनीति का 'खिलाड़ी' होना, दो बिल्कुल अलग बातें हैं। यही वजह थी कि बॉलीवुड का यह 'ही-मैन' राजनीति के अखाड़े में खुद को फिट नहीं कर पाया और हमेशा के लिए इससे दूरी बना ली।

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