Vice President Election 2025 : BJD और BRS ने क्यों बनाई दूरी? विपक्ष में पड़ी दरार या है कोई नई रणनीति?

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News India Live, Digital Desk: देश के उपराष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव ने एक बार फिर सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है. एक तरफ जहाँ सत्ताधारी NDA और विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन आमने-सामने हैं, वहीं कुछ बड़े क्षेत्रीय दलों ने इस चुनावी प्रक्रिया से खुद को अलग रखकर एक नई बहस छेड़ दी है. ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD) और तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने चुनाव में मतदान न करने का फैसला किया है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन पार्टियों के इस कदम का क्या मतलब है? क्या यह विपक्ष की एकता में एक बड़ी सेंध है या फिर 2029 के लोकसभा चुनावों से पहले किसी नई राजनीतिक खिचड़ी की तैयारी?

क्यों पीछे हटे BJD और BRS?

दोनों पार्टियों ने मतदान से दूरी बनाने के लिए अपने-अपने कारण बताए हैं. BJD का कहना है कि वो NDA और 'इंडिया' गठबंधन, दोनों से बराबर दूरी बनाकर रखना चाहती है और उसका ध्यान सिर्फ ओडिशा के विकास और लोगों के कल्याण पर है.BJD पहले भी कई मौकों पर ऐसा करती आई है, जहाँ वह राष्ट्रीय मुद्दों पर किसी एक पाले में खड़े दिखने से बचती है.

वहीं, BRS ने किसानों के मुद्दे को अपनी ढाल बनाया है. पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार तेलंगाना के किसानों को पर्याप्त यूरिया नहीं दे रही है, और इसके विरोध में वह चुनाव का बहिष्कार कर रही है.BRS का यह स्टैंड उसे राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के हिमायती के तौर पर पेश करने की एक कोशिश भी हो सकता है.

कांग्रेस ने उठाए सवाल, कहा- "ये तो NDA की मदद है"

इन दोनों पार्टियों के फैसले पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है. कांग्रेस का मानना है कि मतदान से दूर रहने का यह फैसला सीधे-सीधे NDA को फायदा पहुँचाने जैसा है.पार्टी नेताओं का कहना है कि अगर BJD और BRS वाकई बीजेपी के ख़िलाफ़ हैं, तो उन्हें विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करना चाहिए था इस तरह चुनाव से बाहर रहकर ये पार्टियां एक तरह से NDA की जीत का रास्ता आसान बना रही हैं.

क्या हैं इसके राजनीतिक मायने?

राजनीति के जानकार इस पूरे घटनाक्रम को अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं. कुछ का मानना है कि यह क्षेत्रीय दलों की अपनी पहचान बनाए रखने की एक सोची-समझी रणनीति है. वे न तो सत्ता पक्ष के साथ दिखना चाहते हैं और न ही पूरी तरह से विपक्ष के साथ, ताकि केंद्र से अपने राज्यों के लिए मोलभाव करने की गुंजाइश बनी रहे.

वहीं, कुछ विश्लेषक इसे विपक्षी एकता की एक बड़ी कमजोरी के तौर पर भी देख रहे हैं. एक ऐसे समय में जब पूरा विपक्ष एकजुट होकर सत्ता पक्ष को घेरने की कोशिश कर रहा है, तब दो बड़े दलों का इस तरह अलग राह पकड़ना यह दिखाता है कि 'इंडिया' गठबंधन के सामने अभी कई चुनौतियां बाकी हैं.

हालांकि, BJD और BRS के इस फैसले से चुनाव के नतीजों पर कोई खास असर पड़ने की उम्मीद नहीं है, क्योंकि आंकड़े पहले से ही NDA के पक्ष में हैं. लेकिन इसने भविष्य की राजनीति को लेकर कई नए सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि इन पार्टियों का यह "तटस्थ" रवैया आने वाले समय में क्या गुल खिलाता है.

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