शुक्र प्रदोष व्रत 5 को या 6 सितंबर को? दूर करें सारा कन्फ्यूजन, जानें सही तारीख और क्यों है यह इतना खास
Pradosh Vrat 2025 Date: जब ज़िंदगी में परेशानियाँ बढ़ने लगती हैं और सुख-शांति कहीं खोई हुई सी लगती है, तो हम अक्सर भगवान की शरण में जाते हैं। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत को सबसे उत्तम और शक्तिशाली व्रतों में से एक माना गया है। और जब यह व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है, तो इसका महत्व हज़ारों गुना बढ़ जाता है, क्योंकि तब यह 'शुक्र प्रदोष' कहलाता है।
साल 2025 के सितंबर महीने में यह महासंयोग बन रहा है, लेकिन इसकी सही तारीख को लेकर लोगों के मन में काफी उलझन है। तो आइए, आज हम आपका सारा कन्फ्यूजन दूर करते हैं और जानते हैं कि यह व्रत 5 सितंबर को रखना है या 6 सितंबर को, और यह इतना चमत्कारी क्यों माना जाता है।
क्या है सही तारीख और शुभ मुहूर्त? (Date and Shubh Muhurat)
हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी (13वीं) तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार त्रयोदशी तिथि दो दिनों में पड़ रही है:
- त्रयोदशी तिथि समाप्त: 6 सितंबर 2025, शनिवार को [समय यहाँ आएगा] पर।
अब सवाल उठता है कि व्रत किस दिन रखें?
शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा शाम के समय, यानी 'प्रदोष काल' में की जाती है। इस साल यह शुभ समय 5 सितंबर, शुक्रवार को ही त्रयोदशी तिथि के भीतर पड़ रहा है। इसलिए, शास्त्रसम्मत तरीके से शुक्र प्रदोष का व्रत 5 सितंबर 2025, शुक्रवार को ही रखा जाएगा।
क्यों है 'शुक्र प्रदोष' इतना चमत्कारी?
यह एक ऐसा मौका है जब आप 'एक व्रत से दोगुना फल' पा सकते हैं।
- शुक्र देव देंगे सुख-समृद्धि: शुक्रवार का दिन धन, वैभव, प्रेम और भौतिक सुखों के कारक शुक्र देव का होता है।
यानी, इस एक दिन की पूजा से जहाँ भगवान शिव आपके दुखों का नाश करते हैं, वहीं शुक्र देव आपके जीवन में धन, सुख और समृद्धि की वर्षा करते हैं। जिनकी कुंडली में शुक्र कमजोर हो, उनके लिए यह व्रत किसी वरदान से कम नहीं है।
कैसे करें सरल पूजा?
इस दिन पूजा के लिए बहुत ताम-झाम की जरूरत नहीं होती।
- भगवान शिव को जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और फूल अर्पित करें।
- घी का दीपक जलाएं और 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करते हुए शिव चालीसा का पाठ करें।
- पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
यह व्रत हर उस इंसान के लिए बहुत खास है जो अपनी ज़िंदगी में सुख-शांति और तरक्की चाहता है। इस महासंयोग को हाथ से न जाने दें।
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