VB-G RAM G : अजीब नाम और गहरा धोखा? चिदंबरम ने खोला नए बिल का वो पन्ना जो कोई नहीं पढ़ रहा
News India Live, Digital Desk : हमारे देश में योजनाओं के नाम बदलना कोई नई बात नहीं है। कभी नेहरू, कभी इंदिरा, तो कभी किसी और नेता के नाम पर स्कीमें आती-जाती रही हैं। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। इस बार केंद्र सरकार ने गांवों की लाइफलाइन कही जाने वाली 'मनरेगा' (MGNREGA) पर कैंची चलाई है, और इसी बात पर पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का गुस्सा फूट पड़ा है। उन्होंने संसद और मीडिया के सामने कुछ ऐसा कह दिया, जिसने सियासी हलकों में खलबली मचा दी है। उनका कहना है "सरकार ने महात्मा गांधी की दूसरी बार हत्या की है।"
सुनने में यह बयान बहुत भारी लगता है, है न? तो चलिए, जरा गहराई से समझते हैं कि आखिर 'वीबी-जी-राम-जी' (VB-G RAM G) बिल में ऐसा क्या है जिसे कांग्रेस गरीबों के साथ "फ्रॉड" यानी धोखा बता रही है।
अजीब नाम, अजीब खेल
चिदंबरम ने सबसे पहले तो इस नए बिल के नाम का ही मजाक उड़ाया। 'महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम' अब बन गया है- 'विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)', जिसे शॉर्ट में VB-G RAM G कहा जा रहा है।
चिदंबरम का कहना है कि यह नाम ऐसा लगता है जैसे हिंदी शब्दों को जबरदस्ती इंग्लिश अक्षरों में फिट किया गया हो। लेकिन उनकी असली टीस यह है कि इस योजना से 'महात्मा गांधी' का नाम क्यों हटाया गया? उनका तर्क सीधा है—बापू ने हमेशा ग्राम स्वराज की बात की थी, मनरेगा उनकी सोच का प्रतीक थी। उनका नाम हटाना सिर्फ एक कॉस्मेटिक बदलाव नहीं, बल्कि एक विचारधारा को मिटाने की कोशिश है।
"गारंटी के नाम पर छलावा"
चिदंबरम ने इस बिल को 'फ्रॉड' क्यों कहा? इसके पीछे तीन बड़े कारण उन्होंने गिनाए हैं, जो आपके और हमारे लिए जानने जरूरी हैं:
- फंड का लोचा: पुराने कानून में पैसे की जिम्मेदारी 100% केंद्र सरकार की होती थी। राज्य सरकारों को बस काम करवाना होता था। चिदंबरम के मुताबिक, नए कानून में खर्चा राज्यों के सिर पर डाला जा रहा है (60:40 का अनुपात)। अब बिहार, ओडिशा या यूपी जैसे गरीब राज्य इतना पैसा कहां से लाएंगे? मतलब साफ़ है फंड नहीं होगा, तो काम नहीं मिलेगा।
- कानूनी हक़ खत्म: मनरेगा की खूबसूरती यह थी कि काम मांगना आपका 'कानूनी अधिकार' था। काम नहीं मिला तो सरकार को घर बैठे भत्ता देना पड़ता था। विपक्ष का आरोप है कि नया बिल इसे 'अधिकार' से हटाकर महज एक सरकारी 'स्कीम' बना रहा है। मतलब अधिकारियों की मर्जी चली तो काम मिलेगा, नहीं तो टहला दिया जाएगा।
- खेती के समय काम बंद: नए नियमों में चर्चा है कि जब बुवाई और कटाई का सीजन होगा, तब नरेगा में काम नहीं दिया जाएगा। सरकार का तर्क है कि इससे किसानों को मजदूर मिल जाएंगे। लेकिन चिदंबरम पूछते हैं—"अगर किसी गरीब किसान की फसल बर्बाद हो गई और उसे उसी वक्त काम की जरूरत पड़ी, तो क्या वो भूखा मरेगा?"
"कफन पर कील ठोकने जैसा"
कांग्रेस का कहना है कि यह बिल यूपीए सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि (मनरेगा, 2005) को खत्म करने की साजिश है। चिदंबरम ने तो यहाँ तक कह दिया कि भाजपा सरकार कांग्रेस की विरासत को तो मिटाना ही चाहती है, अब वे गांधी जी की यादों को भी मिटाने पर तुले हैं।
दूसरी तरफ, सरकार का अपना तर्क है। उनका कहना है कि वे देश को 'विकसित' बना रहे हैं और पुराने सिस्टम को डिजिटल और ज्यादा पारदर्शी कर रहे हैं।
अब सच क्या है और राजनीति क्या, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा जब मजदूर काम मांगने जाएगा। लेकिन एक बात तय है 'VB-G RAM G' नाम जितना पेचीदा है, इसके इर्द-गिर्द हो रही राजनीति उससे कहीं ज्यादा उलझी हुई है। क्या आपको लगता है कि पुराने नामों को बदलना विकास के लिए जरूरी है?
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