Varaha Jayanti : जब धरती को उठाकर पाताल में ले गया राक्षस, तब भगवान विष्णु ने लिया यह अनोखा अवतार
News India Live, Digital Desk: Varaha Jayanti : हम अक्सर भगवान के राम और कृष्ण जैसे अवतारों की कहानियां सुनते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि धरती को बचाने के लिए भगवान विष्णु को एक जंगली सूअर का रूप भी लेना पड़ा था? यह उनके दशावतारों में से तीसरा और बेहद महत्वपूर्ण अवतार था, जिसे 'वराह अवतार' के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि पृथ्वी पर ईश्वर का यह पहला कदम था।
क्यों लेना पड़ा भगवान को वराह अवतार?
इस अवतार की कहानी एक शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस हिरण्याक्ष से जुड़ी है। हिरण्याक्ष को ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि उसे कोई देवता, मनुष्य, असुर या पशु मार नहीं पाएगा। इस वरदान के नशे में वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। उसने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि एक दिन उसने मजाक-मजाक में पूरी पृथ्वी को एक चटाई की तरह लपेटा और उठाकर गहरे समुद्र (पाताल लोक) में ले जाकर छिपा दिया। पृथ्वी के बिना सृष्टि में प्रलय की स्थिति आ गई। चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी देवता घबराकर मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
तब हुआ भगवान वराह का अवतरण
सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने एक अनोखा रूप धारण करने का निश्चय किया। चूंकि हिरण्याक्ष ने अपने वरदान में 'सूअर' (वराह) का नाम नहीं लिया था, इसलिए भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी की नाक से एक विशालकाय जंगली सूअर के रूप में अवतार लिया। उनका शरीर पर्वत के समान विशाल था, आंखें बिजली की तरह चमक रही थीं और उनके खुरों से भयंकर गर्जना हो रही थी।
वराह रूप में भगवान विष्णु ने समुद्र में प्रवेश किया और अपनी शक्तिशाली सूंघने की शक्ति से उस स्थान को ढूंढ निकाला, जहां हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को छिपा रखा था। उन्होंने अपनी थूथनी और लंबे दांतों (दंष्ट्र) पर पृथ्वी को टिकाकर उसे समुद्र से बाहर निकालना शुरू किया।
हिरण्याक्ष का अंत और पृथ्वी की स्थापना
जब हिरण्याक्ष ने यह देखा तो वह क्रोध से आग-बबूला हो गया और भगवान वराह को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ, जो कई वर्षों तक चला। अंत में, भगवान वराह ने अपनी गदा से हिरण्याक्ष पर प्रहार किया और उसका वध कर दिया।
राक्षस का अंत करने के बाद, भगवान वराह ने पृथ्वी को समुद्र से निकालकर वापस ब्रह्मांड में उसकी सही जगह पर स्थापित किया। कहते हैं, जब उन्होंने पहली बार पृथ्वी पर अपना पैर रखा, तो पूरी धरती धन्य हो गई। इस तरह भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना की और सृष्टि को प्रलय से बचाया। यह कथा हमें सिखाती है कि जब-जब पृथ्वी पर संकट आता है, भगवान किसी न किसी रूप में उसकी रक्षा के लिए अवश्य आते हैं।
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