US India Ties : रिश्तों पर भारी पड़ी राजनीति? जॉन बोल्टन बोले - अब पहले जैसी नहीं रही मोदी और ट्रंप की दोस्ती

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News India Live, Digital Desk: US India Ties : अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नेताओं के व्यक्तिगत संबंध कितने मायने रखते हैं? क्या दो नेताओं की अच्छी दोस्ती उनके देशों के बीच भी सबकुछ ठीक रखती है? अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जॉन बोल्टन की मानें तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। उन्होंने एक बड़ा बयान देते हुए कहा है कि एक समय पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जो गहरी दोस्ती थी, वह अब वैसी नहीं रही।

बोल्टन ने दुनिया भर के नेताओं को एक तरह से चेताते हुए कहा है कि किसी अमेरिकी नेता से अच्छे व्यक्तिगत रिश्ते इस बात की गारंटी नहीं हैं कि आपका देश उनकी नीतियों की मार से बचा रहेगा। उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार, खासकर टैरिफ को लेकर कुछ तनाव देखने को मिल रहा है।

व्यक्तिगत संबंधों से नहीं चलती विदेश नीति

जॉन बोल्टन, जो अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं, ने साफ किया कि ट्रंप अक्सर अंतरराष्ट्रीय संबंधों को व्यक्तिगत दोस्ती के चश्मे से देखते हैं। अगर किसी नेता से उनकी अच्छी बनती है, तो उन्हें लगता है कि उस देश से अमेरिका के रिश्ते भी अच्छे हैं। बोल्टन के मुताबिक, असल में ऐसा होता नहीं है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि नेताओं की आपसी गर्मजोशी अपनी जगह है, लेकिन जब बात देश के हितों की आती है, तो नीतियां बदल जाती हैं।

एक समय था जब "हाउडी मोदी" जैसे कार्यक्रमों में ट्रंप और मोदी की दोस्ती की खूब चर्चा हुई थी, लेकिन बोल्टन का कहना है कि अब वो बात नहीं रही।अमेरिकी प्रशासन की तरफ से भारत पर लगाए गए टैरिफ और कुछ आलोचनाओं ने इन संबंधों में खटास पैदा कर दी है।

भारत के लिए एक सबक

बोल्टन की बातें भारत के लिए एक तरह का सबक हैं। उनका कहना है कि ट्रंप की नीतियों ने भारत-अमेरिका के संबंधों को कई दशक पीछे धकेल दिया है और भारत को रूस और चीन के करीब जाने पर मजबूर किया है। यह दिखाता है कि विदेश नीति व्यक्तिगत रिश्तों से कहीं ज़्यादा जटिल होती है। किसी भी देश को सिर्फ नेताओं की दोस्ती के भरोसे नहीं बैठना चाहिए, बल्कि अपने हितों को ध्यान में रखकर हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।

नेताओं के बीच अच्छे संबंध एक अच्छी शुरुआत हो सकते हैं, लेकिन वे किसी भी देश की विदेश नीति का आधार नहीं हो सकते। दिन के आखिर में, देशों के अपने हित ही सबसे ऊपर होते हैं।

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