UP Police SOP : साइबर क्राइम पर UP पुलिस का ऑपरेशन क्लीन, DGP ने जारी किए ये 7 बड़े निर्देश
News India Live, Digital Desk: UP Police SOP : ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल पेमेंट और सोशल मीडिया... आज हमारी ज़िंदगी इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है. लेकिन इस सुविधा के साथ एक बड़ा खतरा भी जुड़ा है - साइबर क्राइम. कभी कोई फ़ोन पर मीठी-मीठी बातें करके OTP पूछ लेता है, तो कभी कोई बिजली का बिल भरने के नाम पर अकाउंट खाली कर देता है. और इन सबमें सबसे दुखद होता है इसके बाद का अनुभव, जब पीड़ित मदद के लिए पुलिस थाने के चक्कर काटता है और उसे यह कहकर टरका दिया जाता है कि "यह हमारे एरिया का केस नहीं है" या "साइबर सेल में जाओ".
लेकिन अब ऐसा नहीं होगा! उत्तर प्रदेश में बढ़ते साइबर अपराधों पर लगाम कसने और आम जनता को तुरंत राहत देने के लिए प्रदेश के कार्यवाहक DGP राजीव कृष्ण ने एक नई और सख़्त SOP (Standard Operating Procedure) जारी की है. यह SOP किसी 'ब्रह्मास्त्र' से कम नहीं है, जो अब साइबर ठगों के साथ-साथ लापरवाह पुलिसकर्मियों पर भी चलेगा.
थाने में घुसते ही दर्ज होगी FIR, 'एरिया' का बहाना खत्म!
डीजीपी द्वारा जारी किए गए नए दिशा-निर्देशों में सबसे बड़ी और राहत की बात यह है कि अब कोई भी थाना साइबर अपराध की FIR दर्ज करने से मना नहीं कर सकता.
- ज़ीरो FIR का कॉन्सेप्ट: अक्सर पुलिस यह कहकर पल्ला झाड़ लेती थी कि अपराध उनके थाना क्षेत्र में नहीं हुआ. लेकिन अब DGP का साफ़ आदेश है कि पीड़ित किसी भी थाने में जाए, उसकी FIR तुरंत दर्ज की जाएगी. बाद में भले ही केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाए, लेकिन पीड़ित को लौटाया नहीं जाएगा.
- थानेदार की सीधी ज़िम्मेदारी: अगर कोई भी थाना प्रभारी (थानेदार) FIR दर्ज करने में आनाकानी करता है या लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ़ सख़्त विभागीय कार्रवाई की जाएगी.
- साइबर हेल्प डेस्क सिर्फ़ अर्ज़ी लेने के लिए नहीं: हर थाने में बनी साइबर हेल्प डेस्क का काम अब सिर्फ़ एप्लीकेशन लेकर बैठना नहीं होगा, बल्कि उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ित की FIR दर्ज हो और उसे उसकी कॉपी मिले.
3 दिन में CO और 7 दिन में ASP करेंगे जांच की समीक्षा
मामले को लटकाने का खेल भी अब खत्म होगा.
- FIR दर्ज होने के 3 दिन के अंदर संबंधित सर्किल ऑफिसर (CO) को जांच की समीक्षा करनी होगी.
- एक हफ़्ते के भीतर एडिशनल एसपी (ASP) को केस की प्रगति रिपोर्ट देखनी होगी.
- हर ज़िले में एक ASP रैंक का अधिकारी साइबर अपराधों के लिए नोडल अफ़सर बनाया जाएगा.
इसका सीधा मतलब यह है कि अब मामलों की मॉनिटरिंग बड़े अधिकारियों के स्तर पर होगी, जिससे जांच में तेज़ी आएगी और लापरवाही की गुंजाइश कम हो जाएगी. साथ ही, पुलिसकर्मियों को साइबर अपराधों की जांच के लिए स्पेशल ट्रेनिंग भी दी जाएगी.
डीजीपी का यह नया कदम उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की एक नई किरण है जो ऑनलाइन ठगी का शिकार होने के बाद सिस्टम के आगे खुद को बेबस महसूस करते है. अब उम्मीद है कि पुलिस ज़्यादा संवेदनशीलता और तेज़ी से काम करेगी और साइबर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सकेगा.
--Advertisement--