Trump's 50% tariff fear : क्या भारत में बने iPhones अमेरिका में होंगे महंगे

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News India Live, Digital Desk:Trump's 50% tariff fear : डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान कि यदि वह अमेरिकी राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत से आयात होने वाले iPhones पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया जाएगा, एक नई बहस छेड़ सकता है। हालांकि, भारतीय उपभोक्ताओं के लिए इससे iPhone की कीमतें बढ़ने की आशंका नहीं है, बल्कि इसका असर अमेरिका में इन फोन्स की कीमतों पर पड़ सकता है। यह टैरिफ प्रस्ताव उस समय आया है जब एपल जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियाँ अपनी विनिर्माण इकाइयों को चीन से बाहर निकालकर भारत जैसे देशों में स्थानांतरित कर रही हैं।

ट्रंप ने तर्क दिया है कि अमेरिकी वस्तुओं पर भारत द्वारा लगाए जाने वाले उच्च शुल्कों के जवाब में यह कदम उठाया जाएगा। उनका दावा है कि अमेरिका अपने सामान पर भारतीय टैरिफ के कारण राजस्व खो रहा है और इसी तर्क के साथ वह "रेसिप्रोकल टैरिफ" लगाना चाहते हैं। उन्होंने भारत को एक "टैरिफ किंग" भी कहा है। फिलहाल, अमेरिकी वाणिज्य प्रतिनिधि के कार्यालय के अनुसार, अमेरिका से भारत को निर्यात होने वाले कुछ सामानों पर लगभग 60% टैरिफ लगता है, जबकि भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले सामान पर औसत टैरिफ 4.8% है। यह अंतर दिखाता है कि अमेरिकी पक्ष की क्या चिंताएँ हो सकती हैं।

यदि ट्रंप वापस सत्ता में आते हैं, तो यह "मेक इन इंडिया" पहल पर एक अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि इसका सीधा असर भारत में निर्मित उत्पादों की अंतर्राष्ट्रीय बिक्री पर पड़ेगा, विशेषकर अमेरिकी बाजार में। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि कोई उत्पाद भारत में बनता है, लेकिन उसकी अंतिम बिक्री अमेरिका में होनी है, तो ट्रंप का 50% का प्रस्ताव अमेरिकी ग्राहकों के लिए उस iPhone की कीमत काफी बढ़ा देगा। मौजूदा बाइडेन प्रशासन इस तरह के एकतरफा भारी टैरिफ का समर्थन नहीं करता है, और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के अनुसार भी ये टैरिफ जटिल हो सकते हैं।

एपल के लिए, भारत एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है, खासकर "चाइना + 1" रणनीति के तहत। भारत सरकार भी इस पर जोर दे रही है कि एपल जैसे प्रमुख खिलाड़ी अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करें। यदि ट्रंप का प्रस्ताव लागू होता है, तो यह भारत से निर्यात होने वाले iPhones की मात्रा और लाभप्रदता को सीधे प्रभावित करेगा, जिससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करना होगा। उद्योग विशेषज्ञ मानते हैं कि उपभोक्ता ही ऐसे शुल्कों का अंतिम भार उठाते हैं।

 

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