राजस्थान की राजनीति का ये अजीब मोड़ अरावली बचाने निकले बेनीवाल और गायब हो गए पायलट

Post

News India Live, Digital Desk : राजस्थान की राजनीति कभी स्थिर नहीं रहती; यहाँ रेत के धोरों की तरह हवा का रुख पल-पल में बदल जाता है। आजकल पूरे प्रदेश में हनुमान बेनीवाल के 'अरावली मार्च' की चर्चा है। मकसद तो बड़ा नेक था खनन माफियाओं से अरावली की पहाड़ियों को बचाना, लेकिन मार्च की शुरुआत होते ही ये मामला 'पर्यावरण' से ज्यादा 'पॉलिटिकल' हो गया।

इस मार्च के दौरान एक ऐसा वाक्या हुआ जिसने राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी तेज कर दी है। खबर ये है कि बेनीवाल के इस शक्ति प्रदर्शन के मंच से सचिन पायलट की तस्वीरें और उनके प्रति जो सॉफ्ट कोना अक्सर देखा जाता था, वो पूरी तरह 'नदारद' दिखा।

जब मंच से हटा दिए गए 'साथी' के नाम...
सचिन पायलट और हनुमान बेनीवाल, दोनों ही राजस्थान के बड़े और जनाधार वाले नेता हैं। पिछले कुछ सालों में कई मौकों पर इन दोनों नेताओं के बीच एक आपसी समझ दिखी है, जिससे अक्सर ये कयास लगाए जाते थे कि क्या ये दोनों मिलकर राजस्थान में कोई नया समीकरण बनाएंगे?

लेकिन अरावली मार्च के मंच ने तस्वीर कुछ और ही बयां कर दी। बताया जा रहा है कि बेनीवाल के समर्थकों ने मंच की सजावट से उन तमाम यादों को दरकिनार कर दिया जो किसी भी तरह से सचिन पायलट या उनके समर्थकों को 'महिमामंडित' करती थीं। खुद बेनीवाल के सुर भी कुछ बदले-बदले से नज़र आए।

हनुमान बेनीवाल का अपना 'अंदाज़'
जो लोग हनुमान बेनीवाल को जानते हैं, उन्हें पता है कि वो किसी के दबाव में काम करना पसंद नहीं करते। अपनी राजनीति के वो खुद ही मास्टर हैं। अरावली मार्च के बहाने उन्होंने एक सीधा मैसेज दिया है—"राजस्थान में लड़ाई वो खुद लड़ रहे हैं और उन्हें अपनी पहचान के लिए किसी कांग्रेस या बड़े चेहरे की वैसाखी की जरूरत नहीं है।" बेनीवाल जानते हैं कि आगामी चुनावों के लिए अपनी जमीन अकेले तैयार करना ही भविष्य का सबसे सुरक्षित दांव है।

सचिन पायलट समर्थकों की खामोशी के मायने
पायलट खेमे के लिए भी यह थोड़ा असहज करने वाला पल था। कल तक जो नेता एक-दूसरे के सम्मान में कसीदे पढ़ते थे, आज उन्हीं के मार्च में पायलट की गैरमौजूदगी और फोटो विवाद ने कार्यकर्ताओं के मन में खटास पैदा कर दी है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कोई रणनीति है या वाक़ई पुरानी दोस्ती अब इतिहास बन चुकी है?

क्या अब समीकरण बदल जाएंगे?
राजनीति में सवेरा होते ही नए दुश्मन और शाम ढलते ही नए दोस्त बन जाते हैं। अरावली बचाने की ये मुहीम फिलहाल पहाड़ियों से ज्यादा मंचों पर शोर मचा रही है। एक तरफ पहाड़ खोदने वाले माफिया हैं, तो दूसरी तरफ एक-दूसरे का आधार खोदने वाली ये सियासी बिसात।

हकीकत ये है कि बेनीवाल इस वक्त 'ना गौर न कांग्रेस' बल्कि सिर्फ़ अपने वर्चस्व की ओर बढ़ रहे हैं। पायलट की फोटो हटने का मामला भले ही छोटा लगे, लेकिन राजस्थान जैसे संवेदनशील राज्य में यह आने वाले तूफ़ान का संकेत भी हो सकता है।

अब देखना ये होगा कि क्या ये दरार गहरी होगी या इसे किसी गुप्त मीटिंग के बाद भर दिया जाएगा? फिलहाल तो अरावली की हवाओं में सियासत का पारा काफ़ी गरम है।

--Advertisement--