The last stop of the Kanwar Yatra: सावन शिवरात्रि पर जल चढ़ाने की क्या है विशेष वजह
News India Live, Digital Desk: The last stop of the Kanwar Yatra: सावन का महीना आते ही देशभर में शिव भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है। यह पावन समय भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, और इस दौरान होने वाली कांवड़ यात्रा भक्तों की अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु, जिन्हें कांवड़िया कहा जाता है, पवित्र नदियों, विशेषकर हरिद्वार जैसे स्थानों से गंगाजल भरकर, कांवड़ के साथ सैकड़ों किलोमीटर की कठिन यात्रा पैदल तय करते हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य होता है उस पवित्र जल को भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित करना, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कांवड़िए सावन मास की शिवरात्रि पर ही विशेष रूप से शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाते हैं? इसके पीछे एक गहरा धार्मिक और पौराणिक महत्व छिपा हुआ है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था, तो उससे चौदह रत्न निकले थे। इन रत्नों में अमृत से पहले अत्यंत भयंकर 'हलाहल' नामक विष निकला था। इस विष की उष्णता इतनी तीव्र थी कि उससे पूरी सृष्टि पर संकट आ गया था और तीनों लोक जलने लगे थे। ऐसे समय में, सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस संपूर्ण विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। यह घटना सावन मास में घटी थी। विषपान करने से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया, जिसके कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। विष के प्रभाव से उत्पन्न असहनीय जलन को शांत करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था।
तभी से यह मान्यता प्रचलित है कि सावन के महीने में भगवान शिव पर जल अर्पित करने से विष का ताप शांत होता है और भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान गंगाजल भरकर लाना और विशेष रूप से सावन शिवरात्रि के दिन इसे शिवलिंग पर चढ़ाना इसी पौराणिक घटना को स्मरण करने और भगवान शिव को शीतलता प्रदान करने का एक तरीका है।
धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त पूरे सावन मास में व्रत रखते हैं और कांवड़ यात्रा कर विधि-विधान से शिवरात्रि के दिन भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाते हैं, उन्हें भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख, शांति तथा समृद्धि का वास होता है। इस प्रकार, सावन शिवरात्रि का दिन कांवड़ यात्रा के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण दिनों में से एक माना जाता है, जब करोड़ों शिवभक्त अपनी श्रद्धा और समर्पण का अंतिम चरण पूर्ण करते हैं।
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