बाहर लगी आग तो पानी से बुझ जाती है परंतु भीतर की आग सत्संग द्वारा ही बुझती है-श्री सुभाष शास्त्री जी

कठुआ 07 मई (हि.स.)। श्री ब्राह्मण सभा कठुआ द्वारा भगवान श्री परशुराम जयंती पर्व के उपलक्ष में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन पूज्य संत श्री सुभाष शास्त्री जी महाराज ने उपस्थित संगत पर अपने दिव्या प्रवचनों की वर्षा करते हुए संगत को निहाल कर दिया।

पूज्य संत श्री सुभाष शास्त्री जी महाराज ने अपने प्रवचनों को आरंभ करते हुए कहा कि वर्तमान समय की पुकार है कि संत प्रेम रुपी अमृत वर्षा करें, क्योंकि आज चारों ओर नफरत हिंसा की आग जल रही है, कोई काम क्रोध की आग में जल रहा है, तो कोई मोह की अग्नि से परेशान है, कहीं अहंकार और घ्रणा की आग है तो कहीं ईर्ष्या द्वेष की अग्नि की ज्बालाओं से मनुष्य जल रहा है। उन्होंने कहा कि बाहर लगी आग तो पानी आदि से बुझ जाती है परंतु भीतर की आग प्रेम रूपी जल, प्रेम की वर्षा अर्थात सत्संग के द्वारा ही बुझती है। इस मानसिक आग को संत ही बुझा सकते हैं। कहते हैं आग लगी संसार को बरसन लगे अंगार, संत ना होते जगत में तो जल मरता संसार। शास्त्री जी ने कहा कि आज आग की फॉन्ग खेल रहा है संसार।

आप जिस और भी देखें मानव मानव के लहू का प्यासा दिख रहा है। जो घृनित घटनाएं घट रही हैं और जिसमें कितनी ही जाने स्बाह हो गई, क्या कोई भी धर्म इस संसार का फैसला करने के लिए प्रेरित करता है, उत्तर केवल है नहीं, परंतु फिर भी ऐसा होता जा रहा है ऐसी घटनाओं की आग से यदि निजात पानी है तो इस संसार को प्रेम का पाठ पढ़ाना ही होगा और इसके लिए शिक्षक होंगे केवल संत, वह किसी भी धर्म के हो सकते हैं। अंत में शास्त्री जी महाराज ने संगत से अनुरोध किया के आप संसार को तो नहीं बदल सकते परंतु एक अच्छे साधक होने के नाते खुद को बदलने का प्रयास करें, परिणाम स्वरूप आपके घर समाज आदि में आपके बदलाव का असर शांति के रूप में दिखना शुरू हो जाएगा।