इतिहास का सबसे बड़ा झूठ बांग्लादेशी पार्टी का दावा ,बीएनपी नेता के इस बयान से हिल गया 1971 का सच
News India Live, Digital Desk: राजनीति भी क्या चीज है, अच्छे-भले इतिहास को बदल कर रख देती है। आज हम विजय दिवस (16 दिसंबर) मना रहे हैं, वो दिन जब भारत और बांग्लादेश ने मिलकर पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन जरा सोचिए, जिस बांग्लादेश को बनाने के लिए हमारे हजारों जवानों ने खून बहाया, वहां के कुछ नेता आज क्या कह रहे हैं?
बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी BNP (Bangladesh Nationalist Party) के एक बड़े नेता ने ऐसा बयान दिया है, जिसे सुनकर किसी भी भारतीय (और सच्चे बांग्लादेशी) का सिर शर्म और गुस्से से झुक जाएगा। उन्होंने दावा किया है कि 14 दिसंबर 1971 को जो 'बुद्धिजीवियों का कत्लेआम' (Massacre of Intellectuals) हुआ था, वह पाकिस्तान ने नहीं, बल्कि भारत ने किया था।
सफेद झूठ और पाकिस्तान प्रेम
इसे "सफेद झूठ" कहना भी कम होगा। पूरी दुनिया जानती है, इतिहास की किताबों में दर्ज है, और खुद बांग्लादेश के पुराने लोग गवाह हैं कि कैसे हार तय देखकर पाकिस्तानी सेना और उनके साथी 'अल-बद्र' ने 14 दिसंबर की रात को बांग्लादेश के डॉक्टर्स, प्रोफेसर और लेखकों को घरों से निकाल कर मारा था। मकसद था— नए बनने वाले देश को दिमागी रूप से अपाहिज कर देना।
लेकिन आज, 2025 में ढाका में खड़े होकर ये नेता कह रहे हैं कि यह काम भारतीय सेना की साजिश थी। इसे कहते हैं "जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना।"
भारत विरोधी लहर क्यों?
यह बयान सिर्फ एक नेता की जुबान फिसलना नहीं है, यह एक सोची-समझी रणनीति है। बांग्लादेश में एक तबका ऐसा है जिसके दिल में आज भी पाकिस्तान के लिए 'सॉफ्ट कॉर्नर' है। अपनी राजनीति चमकाने के लिए और कट्टरपंथी वोटों को खुश करने के लिए, ये लोग "भारत विरोधी कार्ड" (Anti-India Card) खेल रहे हैं।
वो भूल गए हैं कि अगर 1971 में भारतीय सेना "मित्र वाहिनी" बनकर न खड़ी होती, तो शायद आज वे उर्दू बोल रहे होते, बांग्ला नहीं।
इतिहास गवाह है
हम और आप सच्चाई जानते हैं। उस वक्त भारतीय सेना का अनुशासन और मानवीय चेहरा पूरी दुनिया ने देखा था। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को सम्मान के साथ सरेंडर करवाना, और फिर उन्हें सुरक्षित रखना— यह काम सिर्फ भारतीय सेना ही कर सकती थी। ऐसे में, कत्लेआम का आरोप लगाना न सिर्फ हास्यास्पद है, बल्कि उन शहीदों का अपमान है जिन्होंने मुक्ति संग्राम में जान दी।
हमें सतर्क रहने की जरूरत है। पड़ोस में जो नफरत की आग भड़काई जा रही है, उसका जवाब हमें तथ्यों और एकता से देना होगा। इतिहास को कोई कितना भी मिटाने की कोशिश करे, सच की जीत हमेशा होती है।
--Advertisement--