रामायण का वो रहस्य आखिर क्यों अपनी सारी शक्तियां भूल गए थे बजरंगबली? वजह जानकर रह जाएंगे दंग
News India Live, Digital Desk : हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी (Hanuman Ji) को बल, बुद्धि और विद्या का सागर कहा जाता है। रामायण में जब भी संकट आया, संकटमोचन ने उसे पल भर में दूर कर दिया। चाहे समुद्र लांघना हो या पूरा पर्वत उठाना हो। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी असीम ताक़त होने के बावजूद, माता सीता की खोज के दौरान समुद्र किनारे पहुँचकर हनुमान जी उदास क्यों बैठ गए थे? उन्हें क्यों लग रहा था कि वो इस समुद्र को पार नहीं कर पाएंगे?
इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी और एक 'श्राप' छिपा है, जो उन्हें बचपन में मिला था। आइये, आज आपको वो किस्सा सुनाते हैं।
जब 'मारुति' की मस्ती ने ऋषियों को कर दिया था परेशान
बात उस समय की है जब हनुमान जी बच्चे थे और उन्हें 'बाल हनुमान' कहा जाता था। इंद्र देव के वज्र के प्रहार और फिर देवताओं से मिले अनेक वरदानों के कारण, हनुमान जी बेहद शक्तिशाली हो गए थे। न उन्हें आग जला सकती थी, न पानी डुबो सकता था।
लेकिन कहते हैं न, 'बचपन तो बचपन होता है।' हनुमान जी बहुत नटखट थे। उन्हें अपनी ताक़त का अंदाज़ा तो था नहीं, तो वो खेल-खेल में ऋषियों-मुनियों को तंग किया करते थे। कभी उनकी पूजा की सामग्री उठा कर भाग जाते, कभी यज्ञ बुझा देते, तो कभी तपस्या में लीन ऋषियों को हवा में उड़ा देते।
ऋषि-मुनि जानते थे कि यह बच्चा साधारण नहीं है, इसलिए वे काफी समय तक शांत रहे। लेकिन जब शरारतें हद से ज्यादा बढ़ गईं और पूजा-पाठ होना मुश्किल हो गया, तो ऋषियों को थोड़ा क्रोध आ गया।
और मिल गया श्राप...
उनमें से एक ऋषि (कुछ कथाओं में मतंग ऋषि का ज़िक्र आता है) ने हनुमान जी को सबक सिखाने के लिए थोड़ा कठोर फैसला लिया। उन्होंने हनुमान जी से कहा-
"हे वानर कुमार! तुम्हें अपनी ताक़त पर बहुत घमंड है और तुम इसका इस्तेमाल तपस्वी लोगों को तंग करने में कर रहे हो। जाओ, मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम अपनी सारी शक्तियों को भूल जाओगे। जिस बल का प्रयोग तुम चंचलता में कर रहे हो, वो तुम्हें तब तक याद नहीं आएगा जब तक कोई तुम्हें तुम्हारी ताक़त की याद न दिलाए।"
हम सभी जानते हैं कि हनुमान जी (Hanuman Ji) को बल, बुद्धि और विद्या का सागर कहा जाता है। रामायण में जब भी संकट आया, संकटमोचन ने उसे पल भर में दूर कर दिया। चाहे समुद्र लांघना हो या पूरा पर्वत उठाना हो। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि इतनी असीम ताक़त होने के बावजूद, माता सीता की खोज के दौरान समुद्र किनारे पहुँचकर हनुमान जी उदास क्यों बैठ गए थे? उन्हें क्यों लग रहा था कि वो इस समुद्र को पार नहीं कर पाएंगे?
इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी और एक 'श्राप' छिपा है, जो उन्हें बचपन में मिला था। आइये, आज आपको वो किस्सा सुनाते हैं।
जब 'मारुति' की मस्ती ने ऋषियों को कर दिया था परेशान
बात उस समय की है जब हनुमान जी बच्चे थे और उन्हें 'बाल हनुमान' कहा जाता था। इंद्र देव के वज्र के प्रहार और फिर देवताओं से मिले अनेक वरदानों के कारण, हनुमान जी बेहद शक्तिशाली हो गए थे। न उन्हें आग जला सकती थी, न पानी डुबो सकता था।
लेकिन कहते हैं न, 'बचपन तो बचपन होता है।' हनुमान जी बहुत नटखट थे। उन्हें अपनी ताक़त का अंदाज़ा तो था नहीं, तो वो खेल-खेल में ऋषियों-मुनियों को तंग किया करते थे। कभी उनकी पूजा की सामग्री उठा कर भाग जाते, कभी यज्ञ बुझा देते, तो कभी तपस्या में लीन ऋषियों को हवा में उड़ा देते।
ऋषि-मुनि जानते थे कि यह बच्चा साधारण नहीं है, इसलिए वे काफी समय तक शांत रहे। लेकिन जब शरारतें हद से ज्यादा बढ़ गईं और पूजा-पाठ होना मुश्किल हो गया, तो ऋषियों को थोड़ा क्रोध आ गया।
और मिल गया श्राप...
उनमें से एक ऋषि (कुछ कथाओं में मतंग ऋषि का ज़िक्र आता है) ने हनुमान जी को सबक सिखाने के लिए थोड़ा कठोर फैसला लिया। उन्होंने हनुमान जी से कहा-
"हे वानर कुमार! तुम्हें अपनी ताक़त पर बहुत घमंड है और तुम इसका इस्तेमाल तपस्वी लोगों को तंग करने में कर रहे हो। जाओ, मैं तुम्हें श्राप देता हूँ कि तुम अपनी सारी शक्तियों को भूल जाओगे। जिस बल का प्रयोग तुम चंचलता में कर रहे हो, वो तुम्हें तब तक याद नहीं आएगा जब तक कोई तुम्हें तुम्हारी ताक़त की याद न दिलाए।"
बस, इसी श्राप के कारण हनुमान जी एक सामान्य वानर की तरह जीवन जीने लगे। वो सुग्रीव के मंत्री बने, लेकिन उन्हें रत्ती भर भी याद नहीं था कि वो उड़ सकते हैं या अपना आकार बढ़ा सकते हैं।
फिर आया 'जागने' का वक़्त
यह श्राप दरअसल एक गुप्त वरदान भी साबित हुआ, ताकि हनुमान जी अपनी शक्ति का सही समय पर सही इस्तेमाल कर सकें। जब वानर सेना समुद्र तट पर सीता जी की खोज में हताश बैठी थी, तब जामवंत जी (Jamvanth) ने उन्हें उनकी शक्तियों की याद दिलाई थी।
उन्होंने कहा था- "का चुप साधि रहा बलवाना..." (हे बलवान! तुम चुप क्यों हो?)
जैसे ही जामवंत जी ने बचपन के वो किस्से और देवताओं के वरदान याद दिलाए, हनुमान जी का शरीर पर्वत जैसा विशाल हो गया और वो अपनी खोई हुई शक्ति को फिर से पहचान गए। इसके बाद उन्होंने जो 'जय श्रीराम' का उद्घोष किया, उससे लंका तक कांप उठी थी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे अंदर भी बहुत ताकत छिपी होती है, बस ज़रुरत है एक सही गुरु या दोस्त की जो हमें हमारी काबिलियत याद दिला सके।
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