Supreme Court's Emphasis on Merit: पंजाब के सरकारी कॉलेजों में प्रोफेसर भर्ती पर बड़ा फैसला, 1158 पद रद्द
News India Live, Digital Desk: पंजाब के सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इस बड़े फैसले से 1158 शिक्षकों की नियुक्ति पर सीधा असर पड़ा है, और यह राज्य की शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता को लेकर एक बड़ा संदेश है।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला पंजाब लोक सेवा आयोग (PPSC) द्वारा भर्ती प्रक्रिया में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों का कथित तौर पर पालन न करने के कारण सुनाया है। मुख्य आपत्ति न्यूनतम योग्यता अंकों को लेकर थी। PPSC ने इस भर्ती के लिए अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों हेतु 45% न्यूनतम अंक अनिवार्य किए थे, लेकिन आरक्षित वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए कोई न्यूनतम योग्यता अंक निर्धारित नहीं किए। यह एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसने कई सवाल खड़े किए, क्योंकि सैद्धांतिक रूप से आरक्षित श्रेणी का कोई उम्मीदवार शून्य अंक हासिल करके भी चयन का दावा कर सकता था, जिससे शैक्षणिक गुणवत्ता से समझौता होता।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि अध्यापन जैसे महत्वपूर्ण पदों के लिए न्यूनतम योग्यता और मेरिट से समझौता नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आरक्षण के प्रावधानों का अर्थ यह नहीं है कि योग्यता के न्यूनतम स्तर को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाए, भले ही आरक्षित श्रेणियों के लिए कट-ऑफ थोड़ी कम रखी जा सकती है, लेकिन वह शून्य नहीं हो सकती। यह फैसला इस सिद्धांत को फिर से स्थापित करता है कि नियुक्तियों में गुणवत्ता एक प्राथमिकता है।
इस भर्ती प्रक्रिया को पहले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी रद्द कर दिया था, जिसके खिलाफ PPSC ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए PPSC की अपील खारिज कर दी।
इस निर्णय से उन हजारों उम्मीदवारों के भविष्य पर अनिश्चितता का बादल मंडरा रहा है, जिन्होंने इस परीक्षा में सफलता पाई थी और उनमें से कई तो नौकरी भी कर रहे थे। अब राज्य सरकार को इन पदों के लिए नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी होगी, जिससे चयनित उम्मीदवारों को फिर से परीक्षा और चयन प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और नियुक्तियों में गुणवत्ता और निर्धारित नियमों का पालन किया जाए, भले ही इसका अस्थायी प्रभाव बड़ा हो।
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