Separate State: भील प्रदेश के जरिए आदिवासियों को मिलेगी सशक्त पहचान राजनीतिक दलों पर बढ़ा दबाव

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News India Live, Digital Desk: देश में दशकों से उठ रही अलग 'भील प्रदेश' राज्य की मांग अब फिर से जोर पकड़ने लगी है। इस बार इसे मुखर रूप से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) और भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) जैसे संगठन उठा रहे हैं। उन्होंने बाकायदा इसका एक प्रस्तावित नक्शा भी पेश किया है, जिसमें चार अलग-अलग राज्यों के कुल 49 जिलों को मिलाकर इस नए राज्य की परिकल्पना की गई है।

'भील प्रदेश' के प्रस्तावित मानचित्र में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल जिलों को शामिल करने की मांग की गई है। राजस्थान के दक्षिण में स्थित बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जैसे जिले, जो "वागड़" क्षेत्र के नाम से भी जाने जाते हैं, इसकी मांग के केंद्र में हैं। गुजरात की बात करें तो अरावली, बनासकांठा, वडोदरा और नर्मदा समेत उसके कई जिलों को इसमें शामिल करने की योजना है। मध्य प्रदेश के झाबुआ, अलीराजपुर, रतलाम और धार जैसे आदिवासी बेल्ट वाले क्षेत्र भी इसका हिस्सा बनेंगे। वहीं, महाराष्ट्र के नासिक, नंदुरबार, धुले और पालघर सहित अन्य जिले भी प्रस्तावित 'भील प्रदेश' का भाग होंगे।

इस अलग राज्य की मांग के पीछे मुख्य कारण आदिवासियों की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक पिछड़ापन है। आदिवासियों का मानना है कि राज्यों के पुनर्गठन के समय उनके हितों को नजरअंदाज किया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे आज भी विकास और सुविधाओं से वंचित हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका के अवसर और बेहतर प्रशासन की कमी इन क्षेत्रों में गहरी पैठ जमा चुकी है। प्रस्तावित 'भील प्रदेश' के पैरोकारों का कहना है कि एक अलग राज्य बनने से आदिवासियों को अपनी परंपराओं और संस्कृति को बचाने का मौका मिलेगा, साथ ही वे अपने क्षेत्र के विकास के लिए स्वयं निर्णय ले पाएंगे। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही आदिवासी आंदोलनों का एक अहम मुद्दा रहा है।

पिछले विधानसभा चुनावों में वागड़ क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी के विधायक के जीतने के बाद इस मांग को और बल मिला है। यह दिखाता है कि स्थानीय आबादी अब अपनी पहचान और अधिकारों को लेकर पहले से ज़्यादा जागरूक है। आगामी लोकसभा चुनावों से पहले भील प्रदेश की मांग को फिर से ज़ोरदार तरीके से उठाने का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बनाना है ताकि आदिवासियों की लंबे समय से चली आ रही इस मांग पर गंभीरता से विचार किया जा सके। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह आंदोलन देश की राजनीतिक तस्वीर पर क्या प्रभाव डालता है।

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