Sawan Special 2025 : क्यों है महादेव के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान जानें पूरी कथा
News India Live, Digital Desk: Sawan Special 2025 : पवित्र सावन मास 2025 का आगमन एक बार फिर हमें भगवान शिव की महिमा और उनके विभिन्न स्वरूपों के बारे में जानने का अवसर देता है। महादेव के स्वरूपों में एक अति विशेष पहचान है उनके मस्तक पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा का विराजमान होना, जिसके कारण उन्हें 'चंद्रशेखर' भी कहा जाता है। शिव जी के माथे पर चंद्रमा की यह शोभा केवल एक सौंदर्य नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी पौराणिक कथा और प्रतीकात्मक महत्व छिपा है। सावन के इस पावन अवसर पर आइए जानते हैं कि आखिर क्यों शिव जी अपने शीश पर चंद्रदेव को धारण करते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियाँ थीं, जिनका विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। इन सभी में रोहिणी, चंद्रदेव को सबसे अधिक प्रिय थीं। इस बात से अन्य पुत्रियाँ रुष्ट हो गईं और उन्होंने अपने पिता दक्ष से इसकी शिकायत की। दक्ष प्रजापति ने कई बार चंद्रदेव को समझाया, परंतु वे अपनी आदत से बाज नहीं आए और केवल रोहिणी पर ही ध्यान देते रहे। क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि वे धीरे-धीरे क्षय होते जाएंगे, और उनकी सारी कलाएँ नष्ट हो जाएंगी।
श्राप के प्रभाव से चंद्रदेव क्षीण होने लगे और उनका तेज घटने लगा। पृथ्वी पर भी इसका भयंकर प्रभाव पड़ा, क्योंकि चंद्रमा ही औषधियों, वनस्पतियों और जीवों को जीवन प्रदान करते हैं। समस्त देवगण चिंतित होकर चंद्रदेव को बचाने के लिए उपाय सोचने लगे। अंततः उन्होंने चंद्रदेव को लेकर भगवान शिव की शरण ली।
शिव जी देवताओं की प्रार्थना और चंद्रदेव की दुर्दशा से द्रवित हो गए। उन्होंने चंद्रमा को उनके श्राप से पूरी तरह मुक्त तो नहीं किया, क्योंकि दक्ष के श्राप का सम्मान रखना भी आवश्यक था। बल्कि उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। शिव के मस्तक पर विराजित होने से चंद्रमा का क्षय होना रुक गया और वे धीरे-धीरे फिर से अपनी कलाओं को प्राप्त करने लगे। यह अर्धचंद्र उनके मस्तक पर एक विशेष आभूषण की तरह स्थापित हो गया।
इस कथा के कई प्रतीकात्मक अर्थ भी हैं। शिव जी द्वारा चंद्रमा को धारण करना उनके सर्वशक्तिमान और संरक्षक स्वरूप को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि कैसे महादेव जीवन की हर समस्या, यहाँ तक कि काल और क्षय से भी मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं। चंद्रमा मानसिक शांति और मन का प्रतीक भी है। शिव जी का उसे धारण करना यह भी सिखाता है कि मानसिक शांति को नियंत्रित करके व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति कर सकता है। सावन के महीने में शिव जी की ऐसी महिमा का स्मरण हमें आत्मिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
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