Sawan 2025: जानें क्यों नवविवाहिता बेटियाँ सावन में जाती हैं मायके, इसके पीछे की परंपरा और रहस्य

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News India Live, Digital Desk: सावन का महीना सिर्फ भगवान शिव की आराधना और हरियाली के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यह महीना नवविवाहित बेटियों के लिए भी एक विशेष महत्व रखता है। भारतीय परंपरा में सदियों से यह प्रथा चली आ रही है कि सावन के पवित्र महीने में नवविवाहित बेटियां अपने ससुराल से मायके (पिता के घर) आती हैं। यह प्रथा केवल एक रिवाज़ नहीं, बल्कि इसके पीछे कई सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और धार्मिक कारण भी छिपे हुए हैं, जो इसे बेहद खास बनाते हैं।

दरअसल, भारतीय संस्कृति में सावन का महीना नए विवाहित जोड़े के लिए कुछ खास बदलाव और जिम्मेदारियां लेकर आता है। इस समय उन्हें शिव-पार्वती की तरह अपने संबंधों को मजबूत करने और साथ ही परिवार के नए रिश्तों को समझने का मौका मिलता है। लेकिन पुराने समय में, नए वैवाहिक जीवन में समायोजन करना कई बार थोड़ा कठिन हो सकता था, खासकर युवा वधू के लिए। सावन में मायके भेजने की परंपरा एक तरह से उन्हें थोड़ा विश्राम देने और अपने पुराने परिवार के साथ फिर से जुड़ने का मौका देने के लिए बनाई गई थी।

यह परंपरा मायके और ससुराल, दोनों परिवारों के लिए शुभ मानी जाती है। कहा जाता है कि इस दौरान नवविवाहिता का अपने माता-पिता के घर आना घर में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आता है। इसके अलावा, पुराने समय में संचार के साधन आज की तरह नहीं थे। ऐसे में यह दौरा परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे से मिलने और रिश्ते को ताज़ा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता था। बेटियाँ यहाँ आकर अपनी मन की बातें साझा करती थीं, पुराने दोस्तों से मिलती थीं और फिर नई ऊर्जा के साथ वापस ससुराल लौटती थीं। यह एक तरह का भावनात्मक सहारा होता था, जो उन्हें नए परिवेश में सामंजस्य बिठाने में मदद करता था।

यह प्रथा आज भी कई परिवारों में कायम है, भले ही आज के आधुनिक युग में संचार और परिवहन बहुत आसान हो गए हैं। यह भारतीय संस्कृति की उस सुंदरता को दर्शाता है जहाँ संबंधों और भावनाओं को गहरा महत्व दिया जाता है, और सावन का महीना इन संबंधों को फिर से पोषित करने का एक अद्भुत अवसर प्रदान करता है।

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