संसद का सत्र या शोर का मंच? हंगामे से दुखी होकर सभापति सी.पी. राधाकृष्णन ने सांसदों को दिखाया सच का आईना
News India Live, Digital Desk : हम और आप वोट देकर नेताओं को संसद (Parliament) भेजते हैं ताकि वे हमारे मुद्दों पर बात करें, कानून बनाएं और देश को आगे ले जाएं। लेकिन जब आप टीवी पर संसद की कार्यवाही देखते हैं, तो अक्सर वहां सिर्फ शोर-शराबा, नारेबाजी और तख्तियां लहराते हुए लोग दिखते हैं। इस बार के शीतकालीन सत्र (Winter Session) में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिससे राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन (C.P. Radhakrishnan) काफी आहत नज़र आए।
सत्र खत्म होने (या समापन की ओर बढ़ने) पर उन्होंने जो बातें कहीं, वो सिर्फ सांसदों के लिए नहीं, बल्कि हम सभी देशवासियों के लिए सोचने का विषय हैं।
"सदन बहस के लिए है, बाधा डालने के लिए नहीं"
सी.पी. राधाकृष्णन ने बहुत ही सधे हुए लेकिन सख्त लफ्जों में अपनी नाराजगी जाहिर की। उनका कहना था कि संसद लोकतंत्र का सबसे पवित्र मंदिर है। यहाँ लोग चर्चा (Debate) और विचार-विमर्श के लिए आते हैं, न कि "बाधा" (Disruption) पैदा करने के लिए।
उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि कई बार समझाने के बावजूद सदस्य वेल (Well) में आकर हंगामा करते रहे। इससे न सिर्फ सदन की गरिमा को चोट पहुंची, बल्कि कई जरूरी मुद्दों पर वैसी चर्चा नहीं हो पाई जैसी होनी चाहिए थी।
बर्बाद हुए घंटों का 'कड़वा सच'
सभापति ने सदन के सामने एक तरह की 'प्रोग्रेस रिपोर्ट' रखी। उन्होंने बताया कि हंगामे की वजह से कितने कीमती घंटे बर्बाद हो गए।
जरा सोचिए, संसद का एक मिनट चलाने में लाखों रुपये (जनता का टैक्स) खर्च होते हैं। जब सदन ठप होता है या स्थगित करना पड़ता है, तो यह सीधे तौर पर देश के खजाने और जनता के भरोसे का नुकसान है। उन्होंने बताया कि जितना काम तय था, उससे काफी कम काम (Productivity) हो पाया है, जो चिंता की बात है।
"सहयोग जरूरी है"
राधाकृष्णन जी ने सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को इशारों में नसीहत दी। उनका मानना है कि मतभेद होना लोकतंत्र की खूबसूरती है, लेकिन उसे जाहिर करने का एक तरीका होता है। शोर मचाकर किसी की आवाज दबाना या सदन को हाईजैक करना सही संसदीय परंपरा नहीं है।
बिल पास हुए, लेकिन...
भले ही सरकार ने हंगामे के बीच कुछ अहम बिल (जैसे परमाणु ऊर्जा या ग्रामीण विकास से जुड़े बिल) पास करा लिए हों, लेकिन सभापति का मानना है कि अगर इन पर शांति से, एक-एक पॉइंट पर बहस होती, तो यह देश के लिए और भी बेहतर होता।
अंत में
सभापति सी.पी. राधाकृष्णन का यह बयान एक चेतावनी भी है और गुहार भी। "विकसित भारत" का सपना तभी पूरा होगा जब हमारे माननीय सांसद समय की कद्र करेंगे।
--Advertisement--