Russia India Defence Meet : अचानक रूस क्यों पहुंचे भारत के डिफेंस टाइकून्स? अंदर की बात जान लीजिए

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News India Live, Digital Desk : भारत और रूस (Russia) की दोस्ती "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे" वाली है, खासकर जब बात हथियारों और डिफेंस की हो। लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा हुआ है जिसने डिफेंस सेक्टर के जानकारों के कान खड़े कर दिए हैं। भारत की बड़ी-बड़ी प्राइवेट और सरकारी डिफेंस कंपनियां अपना बोरिया-बिस्तर लेकर रूस पहुंची हैं।

सवाल यह है कि आखिर अचानक इतनी बड़ी मीटिंग की जरूरत क्यों पड़ी? क्या हम रूस से कोई नया और बड़ा हथियार खरीदने वाले हैं, या कहानी कुछ और है? आइए, आसान भाषा में समझते हैं इस मुलाकात के मायने।

सिर्फ खरीददार नहीं, अब 'पार्टनर' है भारत

वो ज़माना गया जब भारत सिर्फ ऑर्डर देता था और रूस सामान भेज देता था। अब भारत का फोकस 'मेक इन इंडिया' (Make in India) पर है।
खबरों के मुताबिक, इस बार भारतीय डेलिगेशन का मकसद सिर्फ बना-बनाया माल खरीदना नहीं है। चर्चा इस बात पर हो रही है कि हथियारों को भारत में ही कैसे बनाया जाए (Joint Production)। यानी टेक्नोलॉजी रूस की होगी, लेकिन बनाएंगे हम अपने घर में। इससे हमारी सेना को तो फायदा होगा ही, साथ ही हमारे यहां रोजगार भी बढ़ेगा।

पुराने हथियारों की 'सर्विसिंग' है बड़ी वजह

एक कड़वा सच ये भी है कि भारतीय सेना के पास जो हथियार हैं, उनमें से लगभग 60-70% रूसी हैं। चाहे वो हमारे Sukhoi लड़ाकू विमान हों या T-90 टैंक। युद्ध के मौजूदा माहौल (रूस-यूक्रेन) की वजह से रूस से स्पेयर पार्ट्स (Spare Parts) आने में दिक्कत हो रही थी।
यह मीटिंग इसलिए भी ज़रूरी है ताकि हमारी सप्लाई चेन न टूटे। भारतीय कंपनियां चाह रही हैं कि इन पार्ट्स को अब भारत में ही बनाने का लाइसेंस मिल जाए, ताकि हम रूस पर निर्भर न रहें।

क्या किसी 'नई डील' (New Deal) की आहट है?

अटकलें ये भी लगाई जा रही हैं कि भारत अपनी सुरक्षा को और पुख्ता करने के लिए कुछ आधुनिक सिस्टम्स पर बात कर सकता है। चाहे वो S-400 मिसाइल सिस्टम की अगली खेप हो या फिर भविष्य के फाइटर जेट्स। रूस पर तमाम पश्चिमी पाबंदियां (Sanctions) लगी हैं, लेकिन भारत ने साफ़ कर दिया है कि जब बात देश की सुरक्षा की आती है, तो हम वही करेंगे जो हमारे हित में होगा।

दुनिया की नज़रें क्यों हैं इस पर?

जब भी भारत और रूस डिफेंस पर बात करते हैं, तो अमेरिका और यूरोप के पेट में थोड़ा दर्द ज़रूर होता है। लेकिन भारत अपनी "स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी" (Strategic Autonomy) यानी अपने फैसले खुद लेने की आज़ादी का पालन कर रहा है।

कुल मिलाकर, मॉस्को में चल रही यह हलचल सिर्फ एक मीटिंग नहीं, बल्कि भविष्य की तैयारी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस दौरे से हमारी सेना के लिए कौन सी 'गुड न्यूज़' निकलकर आती है।

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