Rare Earth war: चीन की संभावित पाबंदी से भारत के महत्वपूर्ण सेक्टर्स को खतरा एसबीआई की रिपोर्ट
News India Live, Digital Desk: Rare Earth war: चीन द्वारा दुर्लभ पृथ्वी Rare Earth खनिजों के निर्यात पर संभावित प्रतिबंध लगाने से भारत के पाँच प्रमुख उद्योगों पर गहरा असर पड़ सकता है। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि इस कदम से भारत की घरेलू उत्पादन क्षमता और निर्यात दोनों प्रभावित होंगे।
दुर्लभ पृथ्वी खनिज ऐसे तत्व होते हैं जो आधुनिक प्रौद्योगिकी और विभिन्न उच्च-तकनीकी उद्योगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन EV नवीकरणीय ऊर्जा जैसे पवन टर्बाइन चिकित्सा उपकरण और रक्षा प्रणालियों जैसे उत्पाद इनके बिना बन पाना लगभग असंभव है।
एसबीआई अर्थशास्त्रियों की यह रिपोर्ट 'आवर्त सारणी का भविष्य: भारत के दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की संभावनाओं का एक विश्लेषण' शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि भारत के पास दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के दुनिया के पांचवें सबसे बड़े भंडार मौजूद हैं, लेकिन अपनी आवश्यकता का 90% से अधिक हिस्सा अभी भी चीन से आयात करता है। वर्तमान में, चीन दुनिया भर में इन खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।
यदि चीन इन खनिजों के निर्यात पर रोक लगाता है, तो भारत के वे पाँच उद्योग सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे जो इन खनिजों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, पवन ऊर्जा, रक्षा उद्योग, इलेक्ट्रिक वाहन EV बैटरी और फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं। इसके अलावा, चीनी मिट्टी Ceramics, वस्त्र और विशेष कांच व पॉलिशिंग उद्योग भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि चुंबक जैसे उत्पादों के उत्पादन में दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का उपयोग होता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर, रणनीतिक धातुओं जैसे इन दुर्लभ पृथ्वी खनिजों की बढ़ती माँग और चीन के प्रभुत्व को देखते हुए, भारत को अपनी दुर्लभ पृथ्वी नीति को मज़बूत करने की सख़्त ज़रूरत है। भारत के पास अपने घरेलू संसाधनों को विकसित करने, उनकी खनन प्रक्रिया को तेज़ करने और प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं। साथ ही, पुराने उपकरणों और बैटरी से इन खनिजों को पुनः प्राप्त करने Recycling पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। यदि भारत 'आत्मनिर्भर भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है, तो इन खनिजों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना बेहद ज़रूरी है। यह न केवल हमारी औद्योगिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भी हमारी स्थिति को मज़बूत करेगा।
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