बिहार चुनाव से पहले मुजफ्फरपुर में फूटा जनता का गुस्सा, दो विधानसभा क्षेत्रों में मतदान के बहिष्कार का ऐलान
News India Live, Digital Desk : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सियासी सरगर्मी जैसे-जैसे बढ़ रही है, नेताओं के वादों और दावों का दौर भी तेज हो गया है. लेकिन इन सबके बीच मुजफ्फरपुर जिले से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने सभी राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है. यहां बाढ़ की तबाही और एक पुल की दशकों पुरानी मांग से तंग आकर दो विधानसभा क्षेत्रों की जनता ने चुनाव के संपूर्ण बहिष्कार का ऐलान कर दिया है. उनका नारा साफ है - "पुल नहीं तो वोट नहीं."
पारू और बरूराज में चुनाव पर भारी स्थानीय मुद्दे
यह मामला मुजफ्फरपुर के पारू और बरूराज विधानसभा क्षेत्रों का है. इन दोनों क्षेत्रों के दर्जनों गांव हर साल बागमती नदी की बाढ़ का कहर झेलते हैं. सालों से यहां के लोग नदी पर एक पुल बनाने की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी जिंदगी आसान हो सके और बाढ़ के समय भी उनका संपर्क बाकी दुनिया से न टूटे. लेकिन हर चुनाव में उन्हें सिर्फ खोखले वादे ही मिले हैं.
इस बार ग्रामीणों ने ठान लिया है कि वे नेताओं के झांसे में नहीं आएंगे. उन्होंने एकजुट होकर यह फैसला किया है कि जब तक उनकी पुल की मांग पूरी नहीं हो जाती, वे किसी भी राजनीतिक दल के उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे.
"हर बार ठगा गया है हमें"
गांव वालों का गुस्सा साफ तौर पर देखा जा सकता है. उनका कहना है, "हर पांच साल में नेता वोट मांगने आते हैं, पुल बनवाने का वादा करते हैं और फिर चुनाव जीतने के बाद गायब हो जाते हैं. इस बार हमने फैसला किया है कि जब तक काम नहीं होगा, तब तक कोई वोट नहीं दिया जाएगा." लोगों ने कई जगहों पर 'पुल नहीं तो वोट नहीं' के बैनर और पोस्टर भी लगाने शुरू कर दिए हैं.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि बाढ़ के कारण उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं, घर डूब जाते हैं और बच्चों की पढ़ाई तक रुक जाती है. एक पुल न होने की वजह से उन्हें कई किलोमीटर घूमकर जाना पड़ता है और बाढ़ के समय तो वे पूरी तरह से कट जाते हैं.
नेताओं के लिए खड़ी हुई बड़ी मुश्किल
जनता के इस सामूहिक फैसले ने पारू और बरूराज विधानसभा क्षेत्रों के सभी संभावित उम्मीदवारों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है. अब उनके लिए बड़ी-बड़ी रैलियां करने या राष्ट्रीय मुद्दों पर भाषण देने से ज्यादा जरूरी हो गया है कि वे जनता की इस बुनियादी मांग का कोई ठोस समाधान निकालें. इस बहिष्कार के ऐलान के बाद से प्रशासनिक और राजनीतिक खेमों में हलचल तेज हो गई है.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार और प्रशासन चुनाव से पहले लोगों की इस मांग पर कोई कार्रवाई करते हैं, या फिर लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व में इन दो विधानसभा क्षेत्रों के बूथ सूने ही रह जाएंगे.
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