Pradosh Vrat : प्रदोष व्रत तो रखते हैं, पर क्या आप जानते हैं सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष का असली जादू
News India Live, Digital Desk: हिन्दू धर्म में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वैसे तो हर दिन ख़ास होता है, लेकिन सोमवार का दिन और प्रदोष व्रत, इन दोनों का अपना-अपना विशेष महत्व है। सोमवार भोलेनाथ का दिन माना जाता है और प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव के लिए ही रखा जाता है। अब ज़रा सोचिए, जब ये दोनों शुभ संयोग एक ही दिन पड़ जाएँ तो उसका महत्व कितना बढ़ जाता होगा! इसी महासंयोग को 'सोम प्रदोष व्रत' कहा जाता है।
आज, यानी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भी यही पवित्र दिन है, जब व्रत और पूजा करने वालों पर भगवान शिव अपनी कृपा दोगुनी बरसाते हैं।
क्यों है सोम प्रदोष इतना ख़ास?
प्रदोष का मतलब होता है 'रात्रि का प्रारम्भ'। यह वह समय होता है जब दिन ढल रहा होता है और रात शुरू हो रही होती है, यानी सूर्यास्त के आसपास का समय। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में प्रसन्न होकर नृत्य करते हैं और अपनी जटाओं में चंद्रमा को धारण करते हैं।
जब प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है, तो यह ख़ास हो जाता है। सोमवार का दिन चंद्रमा को समर्पित है और चंद्र देव भी भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। इसलिए, सोम प्रदोष का व्रत रखने से न केवल भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, बल्कि व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा से जुड़े दोष भी शांत होते हैं। इससे मानसिक शांति मिलती है, तनाव दूर होता है और जीवन में स्थिरता आती है। यानी एक व्रत और फल अनेक।
सोम प्रदोष व्रत की कथा
इस व्रत के पीछे एक बहुत ही सुंदर कथा है। एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ भीख माँगकर अपना गुज़ारा करती थी। एक दिन उसे रास्ते में विदर्भ देश का घायल राजकुमार मिला। उसके पिता को दुश्मनों ने राज्य से निकाल दिया था। ब्राह्मणी उसे अपने घर ले आई और उसकी देखभाल करने लगी।
एक दिन शांडिल्य ऋषि ने उस ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी। ब्राह्मणी और दोनों बच्चे नियमपूर्वक व्रत रखने लगे। कुछ दिनों बाद, दोनों लड़के वन में घूम रहे थे, जहाँ उनकी मुलाक़ात कुछ गंधर्व कन्याओं से हुई। राजकुमार की मुलाक़ात अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से हुई। अंशुमती के पिता ने राजकुमार को पहचान लिया और अपनी बेटी का विवाह उससे करा दिया। गंधर्वों की विशाल सेना की मदद से राजकुमार ने अपना राज्य वापस जीत लिया।
राजकुमार ने उस ब्राह्मणी और उसके बेटे को अपने दरबार में मंत्री का पद दिया। यह सब उस सोम प्रदोष व्रत का ही फल था, जिससे उस ब्राह्मणी और राजकुमार, दोनों के जीवन के सारे कष्ट दूर हो गए। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति पूरी श्रद्धा से यह व्रत और कथा सुनता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
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