Politics on voter list from Bihar to Bengal : NRC की छाया में मताधिकार का मुद्दा गर्माया विपक्ष-सत्ता पक्ष आमने-सामने
News India Live, Digital Desk: भारतीय राजनीति में इन दिनों मतदाता सूचियों में होने वाली कथित हेरफेर को लेकर नया बवंडर उठ खड़ा हुआ है। यह मुद्दा अब केवल किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बिहार से निकलकर पश्चिम बंगाल तक पहुँच गया है, जहाँ इसे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की आशंकाओं से भी जोड़ा जा रहा है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में चुनाव आयोग पर सीधे-सीधे उंगली उठाई है। उनका आरोप है कि दलित और मुस्लिम समुदाय के लाखों नाम वोटर लिस्ट से गायब किए जा रहे हैं या उनके स्थान पर गलत प्रविष्टियाँ की जा रही हैं। उन्होंने इसे एक सोची-समझी साजिश बताया है, जिससे इन वर्गों को उनके संवैधानिक अधिकार, यानी मतदान से वंचित किया जा सके। ओवैसी ने खास तौर पर पूर्णिया का हवाला दिया, जहाँ एक बड़ी संख्या में ऐसे फर्जीवाड़े का आरोप लगाया गया है।
बिहार में इस मुद्दे के उठने के तुरंत बाद, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) सुप्रीमो ममता बनर्जी भी इसमें कूद पड़ीं। उन्होंने ओवैसी के दावों का समर्थन करते हुए अपनी चिंता जताई कि उनकी सरकार में भी इसी तरह से वोटर लिस्ट से आधार कार्ड को जोड़ने के नाम पर लाखों लोगों के नाम हटाए गए हैं। ममता बनर्जी ने साफ शब्दों में चेतावनी दी कि यदि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य में सत्ता में आती है, तो 'अनागरिक' घोषित कर लाखों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा। उन्होंने लोगों से सतर्क रहने और ऐसे किसी भी प्रयास के खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान किया, जो उनके वोटिंग अधिकार को छीनने की कोशिश करे। उनका यह बयान, पिछली बार एनआरसी को लेकर हुई राजनीतिक रस्साकशी को फिर से सुर्खियों में ले आया है।
सत्ताधारी भाजपा ने हालांकि इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है। भाजपा के नेताओं का कहना है कि यह विपक्ष द्वारा फैलाया गया महज भ्रम और वोट बैंक की राजनीति है। वे जोर देकर कहते हैं कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त और निष्पक्ष संस्था है, और मतदाता सूचियों में कोई भी बदलाव नियमानुसार ही होता है, जिसमें किसी भी राजनीतिक दल का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। भाजपा नेताओं ने यह भी कहा कि उनकी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं धर्म या जाति देखकर नहीं बनाई जातीं, बल्कि देश के हर नागरिक के कल्याण के लिए होती हैं, और विपक्ष सिर्फ सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाना चाहता है।
आने वाले लोकसभा चुनाव और बिहार तथा पश्चिम बंगाल में संभावित विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह विवाद अब सियासी गलियारों में गहरी चिंता का विषय बन गया है। जहाँ एक तरफ विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इसे चुनावी पैंतरा करार दे रहा है। इस आरोप-प्रत्यारोप का खेल किस दिशा में जाता है और भारतीय मतदाता इन दावों पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
--Advertisement--