Siyasi Dangal : मोदी को चायवाला बताकर क्या विपक्ष ने फिर कर दी Self-Goal वाली गलती?

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News India Live, Digital Desk: भारतीय राजनीति (Indian Politics) में कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो कभी एक्सपायर नहीं होते। और उन्हीं में से एक है"चायवाला" (Chaiwala)। जी हाँ, आपने बिल्कुल सही पढ़ा। इतिहास गवाह है कि जब-जब विरोधी खेमे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के पिछले जीवन और उनके चाय बेचने वाले दिनों का मजाक उड़ाया है, तब-तब उसका सियासी फायदा (Political Advantage) भाजपा को ही मिला है। लेकिन लगता है, कांग्रेस (Congress) इस पुरानी किताब के पन्नों को बार-बार पलटने की कसम खा चुकी है।

अभी हाल ही में, सियासी गलियारों में एक बार फिर इसी मुद्दे पर बवंडर मच गया है। मामला फिर वही है पीएम मोदी की पृष्ठभूमि (Background) का मजाक उड़ाना और भाजपा का उस पर तीखा पलटवार करना।[आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है और यह मुद्दा इतना सेंसिटिव क्यों है।

क्या है ताज़ा मामला? (Current Controversy)

दरअसल, सोशल मीडिया पर कांग्रेस के खेमे से कुछ ऐसी टिप्पणियां और पोस्ट सामने आए, जिन्होंने 2014 की यादें ताज़ा कर दीं। रिपोर्ट्स की मानें तो कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पीएम मोदी को 'चायवाला' बताते हुए तंज कसा। बस फिर क्या था, बात निकली तो दूर तलक गई।

बीजेपी (BJP) ने इस मुद्दे को तुरंत लपक लिया। भाजपा के फायरब्रांड प्रवक्ताओं ने इसे सिर्फ प्रधानमंत्री का अपमान नहीं, बल्कि देश के हर उस व्यक्ति का अपमान बताया है जो मेहनत करके खाता है। भाजपा का कहना है कि यह लड़ाई अब "नामदार" बनाम "कामदार" (Naamdar vs Kamdar) की हो गई है। यानी एक तरफ वो लोग हैं जिन्हें सब कुछ विरासत में मिला है, और दूसरी तरफ वो जो अपनी मेहनत और पसीने से ऊपर उठे हैं।

OBC और गरीब तबके पर सीधा हमला?

बीजेपी नेता शहजाद पूनावाला (Shehzad Poonawalla) ने तो साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया कि कांग्रेस को एक ओबीसी (OBC) और गरीब परिवार से आए प्रधानमंत्री की कामयाबी हजम नहीं हो रही है। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे एक साधारण पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति का देश के सर्वोच्च पद पर बैठना, कुछ "कुलीन" सोच रखने वालों की आँखों में खटक रहा है।

जब आप किसी की गरीबी या उसके पुराने पेशे का मजाक उड़ाते हैं, तो आप अनजाने में देश के उस करोड़ों लोगों के स्वाभिमान को चोट पहुँचाते हैं जो रोजमर्रा की मेहनत करके अपना घर चलाते हैं। बीजेपी का तर्क यही है—आप मोदी का विरोध कीजिये, उनकी नीतियों (Policies) का विरोध कीजिये, लेकिन उनके संघर्ष का मजाक मत उड़ाइये।

इतिहास खुद को दोहराता है: 2014 का फ्लैशबैक[

थोड़ा पीछे चलते हैं। आपको 2014 के चुनाव याद हैं? तब कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर (Mani Shankar Aiyar) ने पीएम मोदी के लिए 'चायवाला' शब्द का इस्तेमाल किया था और कहा था कि वो कभी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। नतीजा क्या हुआ?

नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने उस तंज को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया। पूरे देश में "चाय पे चर्चा" (Chai Pe Charcha) अभियान शुरू हो गया और वह तंज एक भावनात्मक लहर (Emotional Wave) में बदल गया जिसने 2014 में भाजपा को सत्ता तक पहुँचाया।

ऐसा लगता है कि विपक्षी पार्टी उस घटना से सबक लेने के बजाय, उसी गलती को दोहरा रही है। सियासी पंडित भी यही कहते हैं कि पीएम मोदी पर जब-जब 'निजी हमले' (Personal Attacks) होते हैं, जनता का झुकाव उनकी तरफ और बढ़ जाता है।

"नामदार" बनाम "कामदार" की जंग

यह सिर्फ एक शब्द का झगड़ा नहीं है। यह दो अलग-अलग विचारधाराओं की टक्कर है। बीजेपी इसे जनता के इमोशन से जोड़ने में माहिर है। वे इसे "सूट-बूट" बनाम "हवाई चप्पल" की लड़ाई बना देते हैं। जब विपक्ष पीएम के बैकग्राउंड को निशाना बनाता है, तो बीजेपी इसे "सामंती सोच" (Feudal Mindset) का नाम देकर जनता के बीच ले जाती है।

 

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