PESA Act Jharkhand : 28 साल बाद भी क्यों अपने हक के लिए तरस रहे हैं आदिवासी? हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा अब तक क्या किया?'
News India Live, Digital Desk: झारखंड, जिसे आदिवासी अस्मिता और जल-जंगल-जमीन की लड़ाई का प्रतीक माना जाता है, वहां आज भी आदिवासियों को उनके सबसे बड़े कानूनी अधिकार का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। यह अधिकार है 'पेसा कानून' (PESA Act), जिसे बने हुए 28 साल हो चुके हैं, लेकिन झारखंड में आज तक इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार को कड़ी फटकार लगाई है और पूछा है कि आखिर पेसा कानून के तहत नियम बनाने में इतनी देरी क्यों हो रही है?
क्या है पेसा कानून और क्यों है यह इतना जरूरी?
पेसा यानी 'पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996'। यह एक ऐतिहासिक कानून है जो आदिवासी बहुल इलाकों (पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्र) में ग्राम सभाओं को बेहद शक्तिशाली बनाता है। इस कानून के तहत:
- जल, जंगल और जमीन पर गांव का अधिकार: गांव के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे जंगल, जमीन और पानी पर पहला अधिकार वहां की ग्राम सभा का होता है।
- विकास का फैसला गांव करेगा: गांव में कोई भी विकास का काम, जैसे खदान, फैक्ट्री या सड़क बनाने से पहले ग्राम सभा की मंजूरी लेना अनिवार्य है।
- अपनी संस्कृति, अपना शासन: आदिवासियों को अपनी परंपरा और संस्कृति के अनुसार अपने गांव का शासन चलाने का अधिकार मिलता है।
यह कानून आदिवासियों को बाहरी शोषण से बचाता है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।
हाईकोर्ट ने क्यों लगाई सरकार को फटकार?
झारखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि राज्य में पेसा कानून को लागू करने के लिए आज तक नियमावली (Rules) ही नहीं बनाई गई है। बिना नियमों के यह कानून सिर्फ एक कागज का टुकड़ा बनकर रह गया है, जिसका कोई फायदा आदिवासियों को नहीं मिल रहा है।
चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के रवैये पर गहरी नाराजगी जताई। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह चार हफ्तों के अंदर एक विस्तृत रिपोर्ट (स्टेटस रिपोर्ट) पेश करे और बताए कि:
- पेसा कानून के तहत नियम बनाने के लिए अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए हैं?
- यह प्रक्रिया अभी किस स्तर पर है?
- इसे पूरी तरह से लागू करने में और कितना समय लगेगा?
क्यों हो रही है इतनी देरी?
पेसा कानून को लागू करने में देरी के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नौकरशाही की उदासीनता को सबसे बड़ा कारण माना जाता है। जानकारों का मानना है कि अगर यह कानून पूरी तरह से लागू हो गया, तो खनन और उद्योग जगत के बड़े-बड़े खिलाड़ियों के लिए आदिवासी इलाकों में जमीन लेना और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना आसान नहीं रहेगा। शायद यही वजह है कि कोई भी सरकार इस मुद्दे पर गंभीर कदम उठाने से बचती रही है।
अब हाईकोर्ट के इस सख्त रुख के बाद यह उम्मीद जगी है कि शायद झारखंड के आदिवासियों को 28 साल के लंबे इंतजार के बाद उनका वह हक मिल पाएगा, जो संविधान ने उन्हें दिया है।
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