मन की शांति का मार्ग, माँ संतोषी की आरती और उसका सच्चा अर्थ
News India Live, Digital Desk: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सब कुछ न कुछ पाने के लिए दौड़ रहे हैं - पैसा, सफलता, शोहरत। लेकिन अक्सर इन सब चीजों के मिल जाने के बाद भी मन में एक खालीपन रह जाता है। हमें लगता है कि हमारे पास सब कुछ है, फिर भी 'संतोष' नहीं है। इसी संतोष को पाने का आध्यात्मिक मार्ग दिखाती हैं माँ संतोषी और उनकी चमत्कारी आरती।
शुक्रवार का दिन माँ संतोषी को समर्पित है। वे संतोष की देवी हैं, जिसका अर्थ है मन की तृप्ति और शांति। उनकी पूजा या व्रत करने से ज़्यादा महत्वपूर्ण उनके नाम के सार को समझना है। जब आप सच्चे मन से उनकी आरती गाते हैं, तो यह सिर्फ एक पूजा विधि नहीं रह जाती, बल्कि यह आपके मन को शांत करने का एक माध्यम बन जाती है।
आरती की पंक्तियों में छिपा जीवन का सार
आरती की हर पंक्ति का एक गहरा अर्थ है। जब हम गाते हैं:
- "गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामें संतोष कियो": यह पंक्ति हमें सादगी का पाठ पढ़ाती है। माँ को कोई छप्पन भोग नहीं चाहिए, वे तो गुड़-चने जैसे साधारण प्रसाद में ही 'संतोष' कर लेती हैं। यह हमें सिखाता है कि खुशियां बड़ी-बड़ी चीजों में नहीं, बल्कि छोटी-छोटी बातों में छिपी हैं।
- "दुखी, दरिद्री, रोगी, संकटमुक्त किए": यह पंक्तियाँ विश्वास दिलाती हैं कि चाहे जीवन में कैसा भी संकट हो, चाहे वो मन का दुख हो या तन का रोग, माँ की शरण में आने से हर बाधा दूर होती है।
जब आप हर शुक्रवार पूरी श्रद्धा से यह आरती गाते हैं, तो आप ब्रह्मांड में एक सकारात्मक ऊर्जा भेजते हैं। यह आरती आपके घर के माहौल को शुद्ध करती है और मन में चल रही उथल-पुथल को शांत करती है।
माँ संतोषी की पावन आरती
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन की, सुख संपति दाता ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
सुंदर चीर सुनहरी, माँ धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
गेरू लाल छटा छबि, बदन कमल सोहे ।
मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर दुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामें संतोष कियो ।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
बिनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
दुखी, दरिद्री, रोगी, संकटमुक्त किए ।
बहु धन-धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
शरण गहे की लज्जा, रखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे ।
ऋद्धि-सिद्धि सुख-संपत्ति, जी भर के पावे ॥
॥ जय संतोषी माता ॥
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