Parliamentary Disruption: जनप्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन और लोकतंत्र का नुकसान
- by Archana
- 2025-08-13 08:56:00
Newsindia live,Digital Desk: Parliamentary Disruption: संसद के सदनों में लगातार होने वाले व्यवधानों के कारण माननीय सदस्यों को सरकार से सवाल पूछने और जनहित के मुद्दों को उठाने के महत्वपूर्ण अवसर गंवाने पड़ रहे हैं। प्रश्नकाल और शून्यकाल, जो कि संसदीय लोकतंत्र की आत्मा माने जाते हैं, हंगामे की भेंट चढ़ रहे हैं। इससे न केवल सांसदों के अधिकारों का हनन हो रहा है, बल्कि सरकार की जवाबदेही भी कम हो रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि संसद में वाद-विवाद और चर्चा लोकतंत्र को मजबूत करती है, लेकिन बार-बार होने वाले गतिरोध से विधायी कामकाज बुरी तरह प्रभावित होता है। सदन की कार्यवाही बाधित होने से अनगिनत घंटे बर्बाद हो जाते हैं, जिसका सीधा असर देश के विकास और नीति-निर्माण पर पड़ता है। प्रश्नकाल के दौरान सांसद मंत्रियों से उनके मंत्रालयों के कामकाज को लेकर सीधे सवाल कर सकते हैं, जिससे सरकार पर नियंत्रण बना रहता है।वहीं, शून्यकाल सांसदों को बिना किसी पूर्व सूचना के तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाने का एक अनूठा मंच प्रदान करता है।
लेकिन हाल के सत्रों में यह देखा गया है कि विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच टकराव के कारण सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पाती है। हंगामे के चलते कई महत्वपूर्ण विधेयक बिना पर्याप्त चर्चा के पारित हो जाते हैं या फिर लंबित रह जाते हैं। इस स्थिति से न केवल जनता का पैसा बर्बाद होता है, बल्कि उन गंभीर समस्याओं का समाधान भी नहीं हो पाता, जिनके लिए जनता अपने प्रतिनिधियों को संसद भेजती है।
कई सांसदों ने इस पर चिंता व्यक्त की है कि सदन में शोर-शराबे और नारेबाजी के कारण उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठाने का मौका ही नहीं मिल पाता। उनका कहना है कि इस तरह के व्यवधान से संसदीय परंपराओं का भी अपमान होता है। यह एक गंभीर विषय है क्योंकि यह सीधे तौर पर आम नागरिक के अधिकारों और लोकतंत्र के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। संसदीय कार्यवाही में रुकावटें एक तरह से उन करोड़ों लोगों की आवाज को दबाने जैसा है, जिनका प्रतिनिधित्व ये सांसद करते हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को मिलकर एक साझा रास्ता निकालने की जरूरत है ताकि सदन की गरिमा बनी रहे और संसदीय कामकाज प्रभावी ढंग से चल सके। लोकतंत्र में असहमति का स्थान है, लेकिन यह असहमति चर्चा और बहस के माध्यम से व्यक्त होनी चाहिए, न कि कार्यवाही को बाधित करके।
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