पाकिस्तान आर्मी चीफ आसिम मुनीर का अमेरिका दौरा: भारत पर वार, घर में रार, जानिए पूरा सच
नई दिल्ली: इन दिनों पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर (Asim Munir) की अमेरिका यात्रा खासी चर्चा में है। पिछले दो महीनों में यह उनका दूसरा अमेरिका दौरा है, जो कई मायने रखता है। एक तरफ जहां अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर टैरिफ (tariff) की तलवार लटका रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वे पाकिस्तानी सेना प्रमुख का व्हाइट हाउस में स्वागत कर रहे हैं। इस बार मुनीर का दौरा सेंटकॉम (CENTCOM) प्रमुख जनरल माइकल ई. कुरिल्ला के विदाई समारोह में शामिल होने के लिए है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब पाकिस्तान में आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता (political instability) अपने चरम पर है और भारत के साथ उसके संबंध भी तनावपूर्ण बने हुए हैं।
ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम या सोची-समझी रणनीति?
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन का पाकिस्तान के प्रति यह गर्मजोशी भरा रवैया कई सवाल खड़े कर रहा है। अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, एक नई दिशा लेते दिख रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, ट्रंप का पाकिस्तान की ओर झुकाव, एक सोची-समझी कूटनीतिक चाल हो सकती है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बनाए रखना हो। जून में हुई आसिम मुनीर की पहली अमेरिका यात्रा में व्हाइट हाउस में लंच का निमंत्रण, इस कूटनीतिक सक्रियता का स्पष्ट संकेत था। वहीं, भारत पर टैरिफ बढ़ाना और पाकिस्तान के साथ व्यापार को बढ़ावा देना, अमेरिकी नीतियों में विरोधाभास दिखाता है।
सियासी दरारों को भरेंगे या और चौड़ा करेंगे?
आसिम मुनीर के इन अमेरिका दौरों का पाकिस्तान की घरेलू राजनीति पर गहरा असर पड़ रहा है। इससे वहां पहले से मौजूद राजनीतिक दरारें और गहरी होती दिख रही हैं। खासकर, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक मुनीर के अमेरिकी प्रभाव और पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। इमरान के समर्थक मुनीर पर "तानाशाह" और "हत्यारा" जैसे आरोप लगाते हुए प्रदर्शन भी कर चुके हैं। आलोचकों का मानना है कि ऐसे उच्च-स्तरीय कूटनीतिक जुड़ाव, नागरिक सरकार की अवहेलना करते हुए, पाकिस्तान की आंतरिक सत्ता संरचना पर सेना के प्रभुत्व को और मजबूत करते हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) के लिए भी यह स्थिति सिरदर्द बनी हुई है, क्योंकि यह उनके नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगाता है।
अमेरिका से बढ़ती नजदीकी: भारत के लिए खतरे की घंटी?
सेना प्रमुख का बार-बार अमेरिका जाना, भारत के लिए एक चेतावनी संकेत हो सकता है। भले ही पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता हावी हो, लेकिन सैन्य मोर्चे पर उसका अमेरिका के साथ बढ़ता तालमेल, भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय बन सकता है। यह यात्रा, अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के साथ पाकिस्तान के मजबूत होते रक्षा संबंधों को भी रेखांकित करती है।
क्या है अमेरिकी खेल?
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका, पाकिस्तान को मध्य एशिया और अफगानिस्तान में अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देख रहा है। हालिया घटनाओं को देखते हुए, अमेरिका संभवतः चीन के प्रभाव को संतुलित करने और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका को भुनाने का प्रयास कर रहा है। हाल ही में, अमेरिकी संसद की बैठक में जनरल कुरिल्ला ने पाकिस्तान को आतंकवाद-निरोध में एक 'शानदार साथी' बताया था, और ISIS के गुर्गों को पकड़ने में पाक सेना के सहयोग का भी उल्लेख किया था।
जनरल मुनीर का दबदबा और शहबाज शरीफ की मुश्किलें
यह कोई छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तान में सेना का प्रभाव सरकार पर बहुत गहरा रहा है। खुद शहबाज शरीफ ने यह स्वीकार किया है कि वह सेना के समर्थन के बिना सरकार नहीं चला सकते थे। ऐसे में, जब सेना प्रमुख विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर व्यक्तिगत रूप से नेतृत्व कर रहे हैं, तो यह निश्चित रूप से नागरिक सरकार के अधिकार क्षेत्र पर सवाल खड़े करता है। यह पाकिस्तान में सत्ता के असंतुलन और सेना के बढ़ते राजनीतिक दखल को भी उजागर करता है।
जनता में रोष: इमरान खान का भूत अब भी हावी?
अमेरिकी शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों से यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान में अभी भी Imran Khan की लोकप्रियता बनी हुई है। उनके समर्थक सेना प्रमुख मुनीर की अंतरराष्ट्रीय छवि को सेना के राजनीतिक प्रभुत्व के रूप में देखते हैं और उनका विरोध करते हैं। यह विरोध इस बात का भी संकेत है कि देश के बड़े जनसमूह के बीच सरकार और सेना के प्रति नाराजगी मौजूद है।
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