बिहार में नई सियासी कलह क्या भूमिहारों की जाति का नाम बदलकर भूमिहार ब्राह्मण होगा?
News India Live, Digital Desk: बिहार की हवा में राजनीति घुल चुकी है। यहाँ कब कौन सा मुद्दा तूल पकड़ ले, कहा नहीं जा सकता। आजकल पटना के सियासी गलियारों में एक समाज की 'पहचान' को लेकर जबरदस्त रस्साकशी चल रही है। मामला बिहार के प्रभावशाली भूमिहार समाज से जुड़ा है। समाज के एक तबके की मांग है कि सरकारी रिकॉर्ड में उनकी जाति के आगे सिर्फ 'भूमिहार' न लिखकर, 'भूमिहार ब्राह्मण' लिखा जाए।
सुनने में यह मांग साधारण लग सकती है, लेकिन इसके पीछे की कहानी और इसके नतीजे बहुत पेचीदा हैं। नौबत यहाँ तक आ गई है कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए बना राज्य सवर्ण आयोग (State Commission for Upper Castes) भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया और उसने गेंद सरकार के पाले में डाल दी है।
आखिर मसला क्या है?
दरअसल, भूमिहार समाज का एक बड़ा वर्ग मानता है कि ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से वे ब्राह्मण ही हैं। उनका तर्क है कि उनके पूर्वज अयाचक ब्राह्मण (पूजा-पाठ न करने वाले) थे, जिन्होंने ज़मींदारी और खेती संभाली। इसलिए, अपनी जड़ों से जुड़ने और सही पहचान पाने के लिए सरकारी दस्तावेजों में 'ब्राह्मण' शब्द जुड़ना ज़रूरी है।
लेकिन, पेंच यह फंसा है कि समाज का ही एक दूसरा धड़ा और कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 'भूमिहार' अपने आप में एक स्वतंत्र और मजबूत पहचान है, जिसे किसी और 'टैग' की ज़रूरत नहीं।
आयोग में ही छिड़ गई 'जंग'
इस मुद्दे पर सवर्ण आयोग की पिछले कुछ दिनों में कई बैठकें हुईं। सूत्रों की मानें तो आयोग के सदस्य ही आपस में एकमत नहीं हो पाए।
- कुछ सदस्यों का कहना था कि यह ऐतिहासिक भूल को सुधारने जैसा है और इसे मान लेना चाहिए।
- वहीं, कुछ सदस्यों ने साफ़ कह दिया कि जाति के नाम में बदलाव करना या नया शब्द जोड़ना आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
बहस इतनी बढ़ी कि कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई। आखिरकार, आयोग ने हाथ खड़े कर दिए और कह दिया कि यह "पॉलिसी मैटर" (नीतिगत फैसला) है, जिसे सरकार और सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department) ही तय करेगा।
नीतीश कुमार के लिए "आगे कुआं, पीछे खाई"
अब यह पूरा मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टेबल पर आ गया है। 2025 के चुनावी माहौल को देखते हुए यह फैसला आसान नहीं होने वाला।
- अगर सरकार 'हाँ' कहती है, तो क्या इससे पारंपरिक ब्राह्मण समाज (मैथिल या कान्यकुब्ज) नाराज़ नहीं होगा?
- अगर 'ना' कहती है, तो अपनी जड़ों की मांग कर रहा भूमिहार समाज इसे अपनी अनदेखी मान सकता है।
भूमिहार बिहार का एक मज़बूत वोट बैंक है और एनडीए (NDA) का कोर वोटर माना जाता है। ऐसे में किसी भी पक्ष को नाराज करना सरकार के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
अब आगे क्या?
फिलहाल सबकी निगाहें मुख्यमंत्री आवास की तरफ हैं। क्या सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई बड़ा फैसला लेगी या इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? जो भी हो, लेकिन इस बहस ने बिहार में एक बार फिर जाति और अस्मिता की राजनीति को गरमा दिया है।
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